रायबरेली को बसाने वाले तमाम भर राजा थे







 चक्रवर्ती सम्राट महाराजा डलदेव राजभर जी द्वारा बसाया गया कोट और किला जो वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के अंतर्गत रायबरेली जिला के नाम से प्रसिद्ध है | इस इतिहास का संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है-----

आज रायबरेली जिले का मुख्यालय जहां स्थित है वह सई नदी के उत्तरी तट पर है इस मुख्यालय के मुख्य सीमा गांवों में अरखा, रसूलपुर, नूरुद्दीनपुर,बारा और जायस आदि स्थित है। रायबरेली जिले के पूर्व में जिला प्रतापगढ़ तथा सुल्तानपुर, पश्चिम में उन्नाव, उत्तर में लखनऊ तथा बाराबंकी और दक्षिण में गंगा नदी की सीमा रेखा के साथ फतेहपुर जिला स्थित है रायबरेली जिले की भूमि प्राचीन समय से किसी न किसी रूप में भारतीय इतिहास से जुड़ी हुई रही है। यह जिला गंगा नदी सई नदी लोनी नदी और नइया नदी के वेसीनों पर टिका है, वैदिक काल में इन नदियों का महत्व प्रदर्शित किया गया है राजनीति के दृष्टि से यह क्षेत्र दक्षिण कोसल राज्य का भू-भाग रहा है बौद्ध काल में भरों का यह प्रदेश रहा है जो भरों के अधीन था। महाभारत के सभा पर्व तथा विराट पर्व में इस प्रदेश को महाराजा विराट का प्रदेश कहा गया है इस प्रदेश को नागवंशी राजा शूरसेन का प्रदेश भी कहा जाता था कुंती का जन्म स्थान यह प्रदेश था। यही शूरसेन (मथुरा का शासक) कुंती का पिता कहा गया है। 

रायबरेली मुख्यालय से पूरब की ओर साल वृक्षों का घना जंगल था इसे सालवन कहते थे इसी सालवन को सलवन भी कहते थे। कालांतर में यही सलवन सलोन कहा जाने लगा जो वर्तमान समय में जिले की एक तहसील है। सालवन से होकर सई नदी बहती है जिसके आसपास इचौली ,मनिहर,रहवासियों,पुरई,नईया और सलोन गांव बस गए थे। पैट्रिक कार्नेगी ने कुशाग्रपुर को कुशभावनपुर कहां है जो भरों की राजधानी थी यह आज गोमती नदी के उत्तरी किनारे पर बसा सुल्तानपुर कहलाता है भरौली (बरेली) भी भरों के कब्जे में था।


  रायबरेली पर 1339 ईस्वी में भरो ने राज्य सत्ता कायम की पर उस भर राजा का नाम अज्ञात है। नगरकोट पर 1356 ईस्वी में प्रताप चंद्र राय का शासन था विवेक चंद नामक उसका सुबेदार सिपाही में तैनात था। विवेक चंद्र को 1360 इसवी की 15 मई को एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जिसका नाम डलदेव रखा गया। आगे चलकर डलदेव की 5 और भाई पैदा हुए बलदेव, काकोरन, थुल, हरदेव और भावो। इन छह भाइयों की माता का नाम अभी तक अज्ञात है। डलदेव ने अपने प्रदेश का विस्तारीकरण करना प्रारंभ कर दिया राजधानी में एक भव्य किले का निर्माण कार्य प्रारंभ कर दिया गया अब वाल्हेमऊ का नाम बदलकर डलमऊ कर दिया गया। किले का निर्माण गंगा नदी के उत्तरी किनारे पर किया गया जो आज रायबरेली से दक्षिण-पश्चिम रायबरेली डलमऊ मार्ग पर 30 कि.मी. की दूरी पर स्थित है डलमऊ, लखनऊ से दक्षिण पूरब की ओर 112 कि.मी. की दूरी पर स्थित है. लखनऊ से सड़क मार्ग द्वारा बछरावां ,लालगंज और रायबरेली का मुख्यालय होते हुए डलमऊ पहुंचा जा सकता है फतेहपुर से डलमऊ की दूरी 40 कि.मी. है।डलमऊ दुर्ग 8 एकड़ भू-क्षेत्र में फैला हुआ है किले की उचाई 30 मीटर आयताकार में है।किले का उत्तर-पूर्वी भाग 163 मी. है।किले के संपूर्ण क्षेत्र को चन्द्राकार परिखा से सुरक्षित किया गया था।

 गंगा नदी के तट पर यहां महाभारत कालीन गृह भी होने का प्रमाण मिलता है यहां एक टीले का कुछ भाग गंगा के बहाव के कारण कट गया है जिसमें गृह की संरचना का कुछ भाग दिखाई देता है। रायबरेली जनपद (शहर) से सटा एक गांव है जिसका नाम अहियापुर है इस गांव का नामकरण अही नाग के नाम से पड़ा है कहा जाता है कि प्राचीन समय में इसी स्थान पर बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता था यहां एक गुड़िया मेला भी लगता था जनश्रुति के अनुसार जनपद में अहीरों की "भावाटीका" के रूप में "भर" आज भी पर्याप्त संख्या में है।

 डलमऊ किले की खुदाई करने पर चंद्रगुप्त प्रथम तथा समुद्र गुप्तकालीन स्वर्ण मुद्राएं प्राप्त हुई। किले के ऊपर से "गंगा नहर" निकाल दिए जाने के कारण किले का मुख्य स्वरूप नष्ट हो गया। किले के पश्चिम की ओर पंसपेट बनवाया गया है इसके बाद पूरब की तरफ से भी बना दिया गया. इस प्रकार राजा डलदेव के किले का अधिकांश भाग पंपिंग सेट एवं गंगनहर के द्वारा कब्जा कर लिया गया किले के पश्चिमी-पूरब भाग में सिंचाई विभाग का आवासीय भवन निर्मित कर दिया गया इस किले पर शर्की ने मखदूम बदरुद्दीन का मकबरा बनवा दिया जो भर-शर्की युद्ध में मारे गए थे यह मकबरा आज माखनपुर मोहल्ले में स्थित है इसी प्रकार हुसैन शाह का मकबरा भी डलमऊ किले पर बनवाया गया इस स्थान पर फिरोजशाह तुगलक की मस्जिद है बनवाया गया है।


 (महाराजा डलदेव द्वारा बनवाए गए अन्य किले)

 1.बलदेव का किला 

2. राजा काकोरन का किला

3. भावो का किला

4. राजा थुल का किला 

5.राजा हरदेव का किला

6. राजा माहे का किला

7. राजा परथू का दुर्ग  

8.राजा जायस का किला

9.ओई डीह का किला 

10.जगतपुर का किला

     जय हो भारशिव नागवंशी छत्रिय राजाओं की

चक्रवर्ती सम्राट महाराजा डलदेव राजभर की जय हो

                       हर हर महादेव,जय भवानी


                                   

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