***भार मुक्ति का प्रांन्त**** जब भारत देश से भारशिव क्षत्रियों नें विदेशी आक्रांता कुषाणों को परास्त कर बुंदेलखंण्ड से मार भगाया,
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***भार मुक्ति का प्रांन्त****
और कुषाणों से बुन्देलखण्ड को मुक्त कराया
जिसके कारण इस क्षेत्र को भार मुक्ति का प्रांन्त कहाँ गया,,,
इलाहाबाद से बुन्देलखण्ड के आगे तक का क्षेत्र भार मुक्ति का प्रांन्त कहाँ जाता है,,,
प्रमाण के रुप में आज भी बहुत सी मन्दिरें खण्डहर के रुप में विद्यमान हैं और भारशिव क्षत्रियों की याद को जिन्दा रखी हैं,,,
इलाहाबाद से दक्षिण पश्चिम में मऊ घाट नामक स्थान है जो आज भी मऊ नामक स्थान से प्रसिद्ध है मऊ शब्द भारशिव के द्वारा उत्पन्न है मऊ का मतलब होता है छावनी या इलाका ,,,,
जो भरो का गढ़
वहाँ पर कार्कोटक नाग भारशिव की अति प्राचीन मन्दिर है और चित्रकुट से 35 से 40 किमी० रैपुरा थाना के अन्तर्गत में एक चर गाँव है
जिसका नाम भर गाँव था, वहाँ के ब्राम्हणो से पुछनें पर पता चलता है कि भारशिव(भर) क्षत्रियों की आबादी थी
और खण्डहर थे भारशिव (भर) क्षत्रियों का शासन था,,, चर गाँव से सटे भब्य शिव मन्दिर विद्यमान है जिसे मुस्लिम आक्रांताओं नें खंडित कर दिया है जो भारशिव (भर) क्षत्रियों द्वारा निर्मित था,,,
इलाहाबाद से 40किमी० भरगढ़ था जो आज बरगढ़ नाम से जाना जाता है,,,
बारा तहसील को अंग्रेजी हुकूमत से पहले इसका प्राचीन नाम कसौटा बोला जाता था और अंग्रेजी हुकूमत में इसे भरगोरा बोला जाता था,,,
मध्यप्रदेश के रीवां जिले में मनगवां क्षेत्र से पहले गंगेव नामक स्थान पर बसौली न० 3 एक प्राचीन भारशिव (भर) क्षत्रियों का भब्य टिला है
जिसके पास हनुमान जी की एक प्राचीन मन्दिर है वहा आज सेंगर राजपूतों की जमीदारी है,,, बुजुर्ग सेंगर राजपूत श्री दामोदर सिंह जी से पूछनें पर पता चला था कि यहाँ ""भरवालन """ का कोट था
यहाँ पर उन्हीं की वस्ती थी और आगे उन्होंने ये भी बताया था कि जब हम खेत की खुदाई करवाते थे, तो वहाँ पर 7 या 8 फिट की नर कंकाले मिलती थी
और आज भी कहीं-कहीं नर कंकाले पाई जाती है,,,
आज श्री दामोदर सिंह जी इस दुनियाँ में नहीं हैं उनका स्वर्गवास हो गया है,,,स्वर्गीय श्री दामोदर सिंह जी के पुत्र ठाकुर प्रवीण सिंह जी के दूर के मौसा लगते हैं,,,
इससे यह मालूम पड़ता है कि भारशिव क्षत्रिय लम्बे कद के थे,,,
विजयपुर और मांडा भारशिव (भर) क्षत्रियों का ही किला था और आज के समय उस किले पर गहरवार राजाओं की जमीदारी है,,,
इस बात को स्वयं पूर्व प्रधान मंत्री श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह जी कहाँ करते थे कि भारशिव(भर) लोग उच्च कोटि के क्षत्रिय थे,,,
फूलपुर तहसील में हड़िया और फूलपुर के बीच में जलालपुर नामक गाँव में विशाल कोट है
जो आज खण्डहर के रुप में तब्दील हो गया है जो भारशिव (भर) क्षत्रियों की थी आज वह कोट मुसलमानों के कब्जे में है,,,
भारशिव (भर)क्षत्रियों और मुसलमानों के युद्ध के दौरान जलालपुर कोट पर मुसलमानों का मजार बना है,,, करछना तहसील के अन्तर्गत पुरैनी गाँव में भार शिव (भर) क्षत्रियों का कोट था
जहाँ तालाब के किनारे खुदाई के दौरान एक सुरंग का पता चला वहाँ के लोगों ने बताया कि पहले यहाँ भारशिव (भर) क्षत्रियों का कोट था
इस पर भी मुसलमानों द्वारा हमला किया गया था,,, विजयपुर किले में भारशिव (भर) क्षत्रियों की इष्ट देवी बुढि माई की मंदिर है जो शीतला देवी जी के नाम से प्रसिद्ध हैं,,,
वहाँ के निवासी अपनें बच्चों का प्रथम मुंडन वहीं पर करवाते हैं,,, ड्रामलगंज से पूरब दक्षिण के मध्य 12 किमी० जानें पर गढवडा धाम शीतला देवी जी की प्राचीन भब्य मन्दिर है
वहाँ के गहरवार राजपूतों से पुछनें पर पता चलता है कि पहले यहाँ भारशिव (भर) क्षत्रियों का शासन था शीतला माई भारशिव (भर) क्षत्रियों की इष्ट देवी हैं,,,,
भारशिव (भर) क्षत्रियों के इतिहास को तोड़ मरोड़कर समाज के बीच प्रस्तुत करेगा उसका भारशिव नागवंशी क्षत्रिय महासभा खंडन करेगा,,,
भारशिव (भर) क्षत्रियों की ताकत तुफान बन गई, भारशिव(भर) क्षत्रियों की वीरता भारत की शान बन गई,
जब-जब उठाई तलवार भारशिव (भर) क्षत्रियों नें दुश्मनों की धरती श्यमशान बन गई***
यह लेखनी मनोज राय और प्रवीण सिंह जी के शोध के द्वारा लिखा गया है***
ओम् भारशिवाय् नमः,,









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