उत्तरप्रदेश की योगी सरकार ने राजा सुहेलदेव राजभर के सम्मान में स्मारक बनाने का फ़ैसला किया है. इससे जुड़े कार्यक्रम का शिलान्यास पीएम नरेन्द्र मोदी करेंगे. राजा सुहेलदेव को राजभर बिरादरी के मान- सम्मान का प्रतीक माना जाता है. वे इस जाति के लोगों के लिए सबसे बड़े महापुरुष हैं.
बहराइच और श्रावस्ती के लिए बड़ी सौगातों की भी हो सकती है घोषणा यूपी की योगी सरकार ने उनकी जयंती को पहली बार बड़े ही धूमधाम से मनाने का फ़ैसला किया है. 16 फरवरी (बसंत पंचमी) को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सुहेलदेव की याद में होने वाले कार्यक्रम से वीडियो कॉन्फ्रेंस से जुड़ेंगे.
योगी आदित्यनाथ उस दिन खुद बहराइच में रहेंगे. कार्यक्रम के दौरान बहराइच और श्रावस्ती के लिए कुछ बड़ी सौगातों की भी घोषणा हो सकती है. इससे चित्तौरा झील पर स्थित महाराजा सुहेलदेव की कर्मस्थली को अब एक अलग पहचान मिलेगी.
1000 हजार साल पहले राजा सुहेलदेव ने दिखाया था पराक्रम आइये अब जरा जान सुहेलदेव महाराज के बारे में भी जान लें. ये बात करीब 1000 साल पुरानी है. इतिहास को यू टर्न देने वाली यह घटना बहराइच में हुई थी. यह दास्तान है वीरता, स्वाभिमान और राष्ट्रभक्ति की.15 जून 1033 को श्रावस्ती के राजा सुहेलदेव और सैयद सालार मसूद के बीच बहराइच के
चित्तौरा झील के तट पर युद्ध हुआ था. इस लड़ाई में सुहेलदेव की सेना ने सालार मसूद की सेना को गाजर-मूली की तरह काट डाला. राजा सुहेलदेव की तलवार के एक ही वार ने मसूद का काम भी तमाम कर दिया. युद्ध की भयंकरता का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि इसमें मसूद की पूरी सेना का सफाया हो गया.
एक पराक्रमी राजा होने के साथ सुहेलदेव संतों को बेहद सम्मान देते थे. वह गोरक्षक और हिंदुत्व के भी रक्षक थे.इतिहासकारों ने भले ही सुहेलदेव भर के पराक्रम और उनकी अन्य खूबियों की अनदेखी की हो, पर स्थानीय लोकगीतों की परंपरा में महाराज सुहेलदेव भर की वीरगाथा लोगों को रोमांचित करती रही.





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