भारत का इतिहास जाने से पहले भरो का इतिहास जानना जरूरी है। बनारस दष अस्वमेध यज्ञ करने की जिक्र अगर किसी जाति का होता है तो भर भारशिव का होता है
किसी भी स्थान के नामकरण के पीछे कोई न कोई ठोस आधार अवश्य होता है । जिसके आधार पर मनुष्य किसी भी स्थान, गांव, शहर. प्रदेश व देश का नामकरण करता आया है। धीरे धीरे नियत नाम जन मानस में व्यापक रूप से प्रचारित प्रसारित हो जाता है। कालान्तर में उन नामों में बोलचाल की भाषा या भाषा अशुद्धि के कारण धार्मिक सोच के अनुरूप सुधार भी होता रहा है।
इसी प्रकार राजा लाखन भर के द्वारा बसाया गया, लाखनपुरी से बने लखनऊ नगर को धार्मिक सोच के कारण रामायण के राम के भ्राता लक्ष्मण के द्वारा बसाया लिखा गया। जबकि, लक्ष्मण ने राम की सेवा के अतिरिक्त कभी शासन किया नहीं, फिर लक्ष्मण के द्वारा लखनऊ बसाने का कोई उचित ही नहीं हैं।
मुस्लिम शासक आजमखां द्वारा तमसा नदी के तट पर एक किला बनवाकर एक नगर बसाया गयां उस नगर का नाम आजमखां ने अपने नाम पर आजमगढ़ रखा। परन्तु पौराणिक सोच से ओत-प्रोत राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा अपने पत्रिकाओं में आर्यमगढ़ लिखा जा रहा है। परन्तु अभी जन मानस में प्रचलन नहीं हो पाया है।
खलील के द्वारा बसाया गया खलीलाबाद को सुश्री मायावती ने सन्त कबीर नगर एवं भदोही जो कभी भरदोही अर्थात भरों का गढ़ था, भरदोही से बने भदोही को सन्त रविदास नगर बना दिया, जो आज प्रचलन में है।
इसी प्रकार बीर लडा़कू भर जाति के नाम पर भरराइच, भर्राइच से बने बहराइच नगर को पौराणिक सोच के लोगों ने कहा कि ब्रह्माने यहां तपस्या किया और यहीं पर एक यज्ञ किया था अतः,उनके नाम पर इस नगर का नाम ब्रह्माइच से बहराइच पड़ा। परन्तु बहराइच की जनता ने इस कपोल कल्पना को नकार दिया। पूर्वाग्रहों से ग्रसित लोग बार बार भारत के गांव, नगर, व देश के नामकरण को धर्म से जोड़ने की कोशिश की है।
इस प्रकार प्रायः देखने व पढ़ने को मिलता है कि व्यक्ति विशेष के नाम पर गांव, नगर का नामकरण हुआ है परन्तु,व्यक्ति विषेष के नाम पर किसी देश का नामकरण नहीं पाया जाता। भारत देश के नामकरण के मामले में धर्म के नाम पर वास्तविकता पर पर्दा डाल कर कपोल कल्पित कहानी के आधार पर भारत के नामकरण के विषय में भारतीय जनमानस को दिग्भ्रमित किया गया है। आर्यों के इस देश में आने के पहले ही भरत भर जनों के नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ चुका था। आर्यों ने इस देश पर आक्रमण करके भीषण संग्राम के बाद अपनी कूटनीति से इस देश पर कब्जा करके आर्यावर्त में शामिल कर लिया।
उस समय कुछ भरत जन दक्षिण व पूरब की तरफ पलायन कर गए। शेष भरत जन को दास ही नहीं बनाया बल्कि उनके साहित्यों को जला कर खाक कर दिया। शेष भरत जन को दास बनाकर पठन पाठन से भी वंचित कर दिया, ताकि वे भरत जन न षिक्षित बनेंगे, न संगठित होंगे और न तो संगठित होकर अपने राज्य के लिए पुनः लड़ाई लड़ेंगे। आर्यों ने सर्व प्रथम इस भू-भाग का भी आर्यावर्त नाम देना चाहा, परन्तु यह नाम साहित्यों तक ही सीमित रहा। यहां के मूल निवासियों ने आर्यावर्त नाम स्वीकार नहीं किया और भारत ही कहते रहे। बाद में मजबूर होकर आर्यों ने आर्यावर्त के इस क्षेत्र को भारत खण्ड कहा। स्मरण रहे कि आर्यावर्त में पहले ईरान, ईराक, अरब, अफगानिस्तान, पाकिस्तान आदि शामिल थे, बाद में भारत भी शामिल हो गया। अन्त में पौराणिक महापुरुषों के नाम पर इस देश का नामकरण जोड़कर भारत के नामकरण के इतिहास का आर्यीकरण की साजिश की गई। परन्तु मतैक्य न होने के कारण स्वयं ही भारत के नामकरण पर विवाद पैदा कर लिया। एक तरफ व्यास रचित महाभारत के आदि पर्व में वर्णित दुष्यन्त के पुत्र भरत के नाम पर भारतवर्ष के नामकरण की बात कही गई जिसे भारतीय जन मानस ने अक्षरषः स्वीकार भी कर लिया है। दूसरी तरफ व्यास ने भागवत पुराण में ऋग्वैदिक ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम पर भारतवर्ष के नामकरण को लिख कर राजा दुष्यंत के पुत्र भरत के नाम पर भारतवर्ष के नामकरण को तथ्यहीन बताकर खारिज कर दिया है। संस्कृत का अवलोकन करें-
प्रियंबदो नाम सूतो मनोः स्वायंभुवस्य ह।
तस्याग्नीधस्ततो नाभि ऋषभष्च सुतस्ततः।।
अवतीर्ण पुत्र षतं तस्यासी द्रहयपारगम्।
तेषां वै भरतो ज्येष्ठो नारायण परायणः।
विख्यातं वर्षमेतधन्नाम्ना भारतमुन्तप्रभ। ; (भागवत पुराण से)
अर्थ-स्वयंभु के पुत्र मनु, मनु के पुत्र प्रियंबदा ;प्रियव्रत, प्रियंबदा के पुत्र आग्निध्र, आग्निध्र के नाभि, नाभि के और ऋषभ के सौ पुत्र हुए।ऋषभ, ज्येष्ठ पुत्र भरत , जो नारायण का भक्त था, उसी के नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा।
अलग अलग साहित्यकारों ने मनगढ़न्त तथ्यों के आधार पर भारत के नामकरण के बिषय में लिखकर भारतीय जनमानस को दिग्भ्रमित करने के षणयंत्र का साहस क्यों किया? इसका एकमात्र जवाब है हमारी धर्मान्धता। उन्हें विश्वास था कि ये कूप मण्डूक लोग जब कर्म काण्ड में महाब्राह्मण को रजाई, गद्दा, चारपाई, आदि देते हैं। स्वयं अपने आखों के सामने देखते हैं कि सारा सामान महाब्राह्मण अपने घर ले जाते हैं। फिर भी इन्हें धर्म के नाम पर अटूट विश्वास है कि वह सारा सामान स्वर्ग में उनके स्वर्गीय पिता को मिल जाएगा। तो ऐसे आंख के अन्धे, नाम नयनसुख लोगों को धर्म के नाम पर कुछ भी मनवाया जा सकता है और पौराणिक सोच के कारण हमने माना भी।
नागा बाहुल्य क्षेत्र को नागालैण्ड, पंजाबी बाहुल्य क्षेत्र को पंजाब, मराठी बाहुल्य क्षेत्र को मराठा, आर्यों के बाहुल्य क्षेत्र को आर्यावर्त, बुन्देलों के क्षेत्र को बुन्देलखण्ड, बघेलों के क्षेत्र को बघेलखण्ड, भरतजनों के बाहुल्य क्षेत्र को भरत खण्ड, फिर भारत कहा गया। विष्व में कहीं भी किसी व्यक्ति विषेष के नाम पर देश या प्रदेश का नाम नहीं रखा गया है। परन्तु भारत के नामकरण के मामले में हमने धर्म के नाम पर सत्य व असत्य पर विचार किए वगैर मनगढ़न्त नामकरण को स्वीकार कर लिया है।
भरत भर जनों का इतिहास अमर है और अमर रहेगा, जब तक भारत देश रहेगा। सत्य पर कुछ समय के लिए पर्दा डाला जा सकता है, परन्तु समाप्त नहीं किया जा सकता। भारत को कभी आर्यावर्त, कभी हिन्दुस्तान तो कभी इण्डिया नाम देकर भरत भर जनों के गौरवशाली इतिहास को समाप्त करने का षणयंत्र किया गया। परन्तु भारत नाम मील का पत्थर साबित हुआ। भारतवर्ष नामकरण के विषय में कुछ इतिहासकारों के विचारों का अवलोकन करें- पता चलेगा कि
इस देश का नाम भारत हो जाने के पीछे दो कथाएं जुड़ी हैं। एक हैं राजा दुष्यन्त के मेधावी पुत्र भरत की और दूसरी है ऋषभदेव के पुत्र भरत की जिनके सम्राट बनने पर प्रजा के आग्रह पर इस देश का नाम भारतवर्ष रखा गया। हम सबकी भी यही धारणाएं हैं। इन्हीं दो कथाओं का उल्लेख कर हम प्रश्न कर्ताओं की जिज्ञासा शान्त करते आए हैं। भारत देश का नाम भारत कैसे पड़ा, कभी भी हमने गम्भीर होकर शोध कार्य नहीं किया। इन दो पौराणिक पात्रों ने हमें इतना बांध दिया कि हम पौराणिक पूर्वाग्रहों के शिकार हो गए।
प्रदेशों देशों के नामकरण के सिद्धान्तों व नियमों पर हमने ध्यान नहीं दिया। व्यक्तियों के नाम पर गांव, नगर, विषिष्ठ स्थान आदि के नाम होते हैं, देश का नहीं। मुम्बा देवी के नाम पर मुम्बई, इला के नाम पर इलाहाबाद, जाबालि ऋषि के नाम पर जाबालिपुरम् ;जबलपुर, राजा भर मानिक के
नाम पर मानिकपुर,
राजा बन्दारस भर के नाम पर बनारस आदि। जाति समूहों के नाम पर, मुहल्लों, गांवों, व नगरों के नाम हो सकते हैं। जैसे शिवहरे जाति के नाम पर सिहोरा, नागजाति के नाम पर नागपुर इत्यादि। प्रदेश अथवा देश का नामकरण जाति, जाति समूहों, भाषा, भौगालिक संरचना आदि के आधार पर होते हैं, अर्थात देश का नाम व्यक्ति-वाचक नहीं समूह वाचक होता है। आप हमारे प्रदेश व देश के नामकरण के सम्बंध में इन्हीं सिद्धान्तों को आधार बना कर सोचिए।
आइये हम विचार करे कि हमारे देश का नाम भारत क्यों ? यदि पुराणकारों ने दुष्यंत पुत्र भरत और जैन ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम से भारत देश के नामकरण होने का उल्लेख कर भी दिया है तो इसका अर्थ्र यह नहीं है कि उन्होंने जो लिख दिया है सही लिखा है। सही तो यह है कि भरतों, भरत तृत्सुगण के नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा है। भरत भर जाति, भरत जाति समूह का उल्लेख ऋगवेद में है । इस भरत जाति के समूह के मुखिया राजा सुदास थे। ऋगवेद में वर्णित दास राज्ञ युद्ध से सभी विद्वान परिचित हैं। भरत जाति बहुत प्रतापी सुरवीर थी और उस जाति के नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा।
भारत देश का नामकरण और हमारे पूर्वाग्रह- बहुजन विकास पाक्षिक ,बी/105, पंजाबी बस्ती बलजीतनगर, नई दिल्ली, अंक 1 सितम्बर 2009 पृश्ठ 2,
विश्व विख्यात महापण्डित राहुल सांकृत्यायन ने भी इसी तथ्य की पुष्टि की है। भरत भर जाति के नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा। कृपया अवलोकन करें- जीता राजभर जाति के थे। कौन सी राजभर जाति? ईसा से पायः दो हजार वर्ष पूर्व, जब आर्य भारत में आए, तब हजारों वर्ष पूर्वजो जाति सभ्यता के उच्च शिखर पर पहुंच चुकी थी। जिसने सुख व स्वच्छतायुक्त हजारों भव्य सुदृढ़ नगर बसाए थे ।
जिनके जहाज समुद्र में दूर दूर तक यात्रा करते थे, वही जाति। व्यसन निमग्न पाकर आर्यों ने उनके सैकड़ों नगरों को ध्वस्त किया, तो भी उनके नाम की छाप आज भारत देश के नाम में है, वही भरत जाति या राजभर जाति। पुस्तक-सतमी के बच्चे शीर्षक -डीह बाबा, लेखक-महापण्डित राहुल सांकृत्यायन
-महापण्डित राहुल सांकृत्यायन के उपरोक्त विचारों का समर्थन करते हुए इतिहासकार रामदयाल वर्मा ने अपना विचार व्यक्त किया है, पुराविद् राहुल सांकृत्यायन ने अपनी पुस्तक सतमी के बच्चे में कहा है कि-भारत वर्ष का नाम भर जाति की देन है, यह सत्य ही है, क्योंकि पुराणों का जन्म गुप्ता चन्द्रगुप्त लोगों के बाद ही हुआ है। जिसमें शकुन्तला पुत भरत का उल्लेख मिलता है। पुस्तक-बिखरा राजवंश, शीर्षक भर राजवंश, लेखक-रामदयाल वर्मा
सरस्वती और यमुना के बीच इनकी भरतजन सघन आबादी थी। आपसी अनबन के कारण आर्यों में दो दल हो गए और जंग षुरू हो गई। ऋगवेद में इसे दासराज्ञ कहा गया है। इस युद्ध में प्राचीन आदिवासियों ने आर्यों के एक दल के साथ मिलकर युद्ध किया, अन्त में विजय भरत नाम की एक शाखा की हुई। आर्यों की भरत षाखा के नाम पर हमारे देश का नाम भारत और उसमें रहने वालों का नाम भारतीय पड़ा। पुस्तक-इतिहास मन्थन गीता पृष्ठ 9,10, लेखक-बलदेवप्रसादसिंह गोरखा
हिन्दू धर्मानुयायी कहते है कि भारत देश का नाम आर्यों के प्राचीन सम्राट दुष्यन्त के पुत्र भरत के नाम पर पड़ा। वेदों में भारत अथवा भारतवर्ष का नाम नहीं मिलता। आर्यावर्त नाम अवश्य मिलता है। रामायण में भारत का नाम नहीं मिलता, यद्यपि राम के भाई भरत का नाम उल्लेख है।......अतः आर्य सम्राट भरत के नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ने का मत सही नहीं जान पड़ता। अप्सरा नर्तकी सुन्दरी मेनका के नृत्य और रूप लावण्य से मुग्ध हो विश्वामित्र के सम्भोग से उत्पन्न शकुन्तला के साथ राजा दुष्यन्त द्वारा संभोग से उत्पन्न भरत के नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ना अशोभनीय है। मेरे विचार से भारत नाम भर व आरख के सम्मिलित नाम से मिल कर बना है। भऱ आरख से भारख और फिर भारत पड़ा। एक समय था जब भर और आरख जातियां सम्पूर्ण देश पर राज्य करती थीं।पुस्तक-चरमराती सामाजिक व्यवस्था, षीर्षक-भारत का नामकरण, पृष्ठ 10, लेखक-बलवन्त राय m a l l b p c s सेवा निवृत
ऋगवेद में वर्णित भरत जाति के नाम पर भारत के नामकरण पर एक और इतिहासकार के विचार का अवलोकन करें-अनेक प्रमाणों के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि भरत भर जाति इस देश की मूल निवासी थी। इस जाति को आर्यों से ही नहीं अनार्यों से भी युद्ध करना पड़ा । इस बहादुर भर जाति के प्रबल षासक सुदास को अकेले सभी 30 राजाओं से युद्ध करना पड़ा, पृथु उक्त सभी आर्य व अनार्य राजाओं को पराजित कर के विषाल साम्राज्य स्थापित कर अपने साम्राज्य का नाम उसने भारतवर्ष रखा।इसी भरत जाति को भर राजभर जाति भी कालान्तर में कहा गया, जिसे अनेक इतिहासकारों ने स्वीकार किया है। पुस्तक-भर/राजभर साम्राज्य, शीर्षक: भारत का नामकरण , पृष्ठ 15,16 लेखक -m b राजभर का उल्लेख
इस देश में ईसा के 3000 वर्ष पूर्व भरत भर जाति का साम्राज्य होना और भरत जाति बाहुल्य क्षेत्र के कारण इस देश का नाम भारत पड़ने की तरफ प्रसिद्ध इतिहासकार/साहित्यकार श्री गजानन माधव मुक्ति बोध की पुस्तक भारत का इतिहास व संस्कृति भी इशारा करती है- आर्य जाति की दूसरी एक षाखा ईशा के 3000वर्ष पूर्व भारत के दरवाजे पर आ खड़ी हुई। उसके अश्वारोही वीरों ने पश्चिमोत्तर, बलूचिस्तान, अफगानिस्तान आर्येतर सभ्यता के केन्द्रों को नष्ट किया। ये आर्य सप्त सिन्धु पंजाब के प्रदेश में अपने उपनिवेश स्थापित करने लगे। ये आर्य जातियां एक नहीं अनेक समूहों और प्रभावों में आईं। पुस्तक-भारत का इतिहास व संस्कृति शीर्षक ऋगवैदिक युग पृष्ठ 24 लेखक गजानन माधव मुक्तिबोध भारत के पष्चिमोत्तर प्रदेश से आते ही आर्यजनों को भिन्न धर्म ,भिन्न सामाजिक व्यवस्था ,भिन्न आचार विचार वाले ऐसी सभ्यता का सामना करना पड़ा जो कि पहले से ही उस प्रदेश में जमी बैठी थी। परिणामत संघर्ष अनिवार्य हो उठा। वह सभ्यता अधिक विकासशील होने से उनकी प्रतिरोध शक्ति भी अधिक थीं जिसके फलस्वरूप अधिकाधिक बैमनस्य और घृणा का वातावरण बनता गया। तदैव शीर्षक युद्ध क्रम पृष्ठ 10 आर्यजन आपस में लड़ते थे। आर्य जाति कई जत्थे में कबीले में बंटी हुई थी। उसमें पांच प्रमुख थे- यदु, तुर्वसु, अनु, द्रह्यु, और पुरु। यह स्वाभाविक ही था कि आर्यजन भूमि के लिए आपस में लड़ते थे। उस काल में पुरु जाति का बहुत प्रभाव था। किन्तु साथ ही उस समय भरत जन नाम की जाति भी बहुत महत्वाकांक्षी थी। पुरु आर्य कहलाते थे। आर्यजन अपने को शुद्ध रक्त वाला समझते थे। उन्होंने ही दास राज्यों को नष्ट किया होगा। इस बात का प्रमाण नहीं मिलता है कि उन आर्य जातियों के अपने अलग अलग राज्य हुआ करते थे । उनके प्रथक नेता अवश्य थे। ये नेता कभी राजा कहलाते थे। इसके विपरीत भरतों का अपना एक वास्तविक राजा था। उसका राज्य यमुना के पूर्व में था। इस राज्य में पष्चिमोत्तर प्रदेश से भागे हुए आए हिमालय के आंचल में रहने वाली यक्ष, गन्धर्व, आदि जातियां भी थी। ये जातियां बहुत पहले से यहां रह रही थीं। भरत जाति का राजा सुदास थे। सुदास ने आर्येतर जातियों का भी एक संघ बना लिये थे। उसका नेतृत्व मेड़ नामक एक आर्येतर पुरुष के पास थे। सुदास भरत जाति का राजा था न कि नेता। इसके विपरीत पश्चिम की ओर के आर्य अभीनेता ही थे। पुरु जाति ने भी आर्य जाति का एक संघ, पुरु, तुर्वस, अनु, द्रह्यु, और यदु बनाया था।........। आर्येतर जन दोनों तरफ से लड़ें राजा सुदास की विजय हुई। पुरुजनों का प्रधान्य समाप्त हुआ। सुदास अपनी इस सफलता से सार्व भौम नरेश बन गया। उसने जीते हुए राज्यों को अपने राज्य में नहीं मिलाया। वरन अपना आधिपत्य स्वीकार करने के लिए उनसे कर बसूल करता रहा। अधिपति की यह भावना आगे चलकर सम्राट की कल्पना में बदल गई। तदैव पृष्ठ 25,26 उपरोक्त युद्ध में ऋगवेद 7,2,33 के अनुसार भरत वंशी राजा सुदास ने पुरु राजा की अध्यक्षता में गठित 10 राजाओं के संघ को परास्त किया। इस प्रकार भरत जाति अर्थात वर्तमान भर जाति के राजा सुदास ने अपने को सम्राट घोषित किया और भरत जनों के विषाल भू भाग का नाम भारतवर्ष रखा।
भर षब्द जिसका पर्यायवाची है; पुस्तक-निघन्टु तथा निरुक्ति, पृष्ठ 154, लेखक डा, लक्षमण स्वरूप अर्थात भर शब्द संग्राम, युद्ध। वीरता का पूर्णतः पर्याय एवं परिचायक है। इसीलिए कहा गया है कि भर इति संग्राम नामः। व्याकरण दर्शन के आधार पर संस्कृत भाषा के ऋधातु से भरड़े अर्थ विस्तार में धारण, भरण पोषण, पालन आदि विविध अथों का विकास धिधातु से हुआ। धृधातु का नाभिक विन्दु भर भरत है। देश का नाम भारत भी भर धातु से उत्पन्न हैं भारतवर्ष का नामकरण प्रथम भाग पृष्ठ 3, लेखक- कुंवर बहादुर कौशिक
डॉ वासुदेवशरण अग्रवाल के अनुसार तथा प्रचलित अनुश्रुति है कि भरतजन वीर योद्धा थे अथवा वारिमी के समय प्राचीन भरतजन की कोई टुकड़ी संघ के रूप में संगठित हो गई थी। भरतजन के नायक नरेष सुदास-शिवोदास ने दास-राज्ञ युद्ध में दस राजाओं को पराजित कर अपनी वीरता का परिचय दिया था। भारत देश के नामकरण में भरतों की वीरता का विशेष योगदान है। शिव जैसी शक्ति एवं गति भरत वीरों में विद्यमान थी।तदैव पृष्ठ जन शब्द का संबंध निष्चित रूप से दिक्,काल, वंष से है। जन षब्द संस्कृत भाषा के जनने से व्युत्पन्न है। भरत भूमि से उत्पन्न जन भरतजन का बोधक है। यह भरत जन जिस भूमि पर उत्पन्न हुआ उसे भारत कहा गया। तदैव पृष्ठ 12।
भरत या भर जाति आर्यों के भारत आगमन के हजारों वर्ष पूर्व इस देश पर शासन कर चुकी थी। सिन्धु घाटी की सभ्यता इसी जाति की सभ्यता थी। इसी भरत या भर जाति के नाम पर ही इस देश का नाम भारत रखा गया। समाज की दशा एवं दिशा पृष्ठ 44, लेखक-फौजदार प्रसाद उर्फ बहुजन तमाम इतिहासकारों ने इसे स्वीकार किया है कि यही भरत जाति कालान्तर में भर जाति के नाम से जानी जाने लगी। हरिवंष पुराण अध्याय 33 पृष्ठ 53 को लक्ष्य बनाते हुए सर हेनरी एम इलियटने कहा है कि भरत वंश भर जाति से संबंधित है ।
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