यह कहानी दो भर महारानीयो की है जो इतिहासकारों ने इन रानियों की इतिहास को नाकाम कर दिया






 यह कहानी दो भर यह कहानी दो भर महारानीयो की है जो इतिहासकारों ने इन रानियों की इतिहास को नाकाम कर दिया… महारानीयो की है जो इतिहासकारों ने इन रानियों की इतिहास को नाकाम कर दिया…

महारानी क्षत्राणी राजवन्ती और रानी धनराजी 17वी शदी में ग्राम परगना व तहसील धौरहरा जिला लखीमपुर                                    धौरहरा शहर जनपद लखीमपुर में नानपारा से लखीमपुर रोड पर धौरहरा शहर के उत्तर ग्राम गोरखपुर दक्छिन बसंतपुर ,नूरपुर और पश्चिम शाहपुर स्थित है । ग्रंथ अवध के तलूकेदार पेज 242पर लिखा है ।पवन बक्शी के अनुसार जहांगीर के शासन काल 1605से 1627के मध्य दो भर रानियां धौरहरा में रहती थी । किसी युद्ध में अपने पति के शहीद हो जाने के कारण बड़ी रानी राजवन्ती ही शासन का देखभाल कर रही थी । ये दोनों रानियां महारानी बल्लरी देवी व सुहेलदेव राजभर और महारानी कुन्तमा व  महराजा बारा के पदचिन्हों पर चलकर अपने शासन का देख रेख करती थी । ये दोनों रानियां जीवन पर्यन्त किसी भी पड़ोसी दुश्मन के दबाव में नहीँ आयीं । जब भी विषम परिस्थितियों उत्पन्न हुयी दोनों रानियों ने शस्त्र लेकर अपने सैनिको के साथ युध्द भूमि में कूद पड़ती थी । इन रानियों को परास्त करने के लिए कई बार दिल्ली दरबार से गवर्नर भेजे जाते थे .परन्तु इन वीरांगनाओं के अदम्य साहस और युद्ध कौशल के सामने एक भी न टिक पाते थे। और पराजय का मुंह देखना पड़ता था। महारानी राज वन्ती जब भी तीर या तलवार लेकर युद्ध क्षेत्र में उतरती दुश्मनों में भगदड़ मच जाती थी । भर रानियों की तलवार की आहट से दुश्मन के रूह कांप जाते थे, भर रानियों ने हमेशा अपने दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब देती थी,

 क्षत्राणी भर रानियों ने अन्य महिलाओं की तरह नहीं रहती थी । तमाम भर रानियों ने अपने राज्य कौशल भरताज को कायम रखती थी, पति का शहीद हो जाने के बाद भी हार नहीं मानती थी, कभी किसी मुगलों की गुलाम नहीं हुई, सम्मान सम्मान की बात आती थी तो जौहर कर लेती थी,

धौरहरा राज के पश्चिम शारदा नदी के तट पर झीपी खान बाछिल गोत्रीय हिंदू से मुस्लिम बना था ,

 अतः जालौर के राव अक्षय राज उर्फ अखराज सिंघ जो उस समय दिल्ली सुल्तान के मनसबदार थे,दिल्ली सुल्तान ने उन रानियों को परास्त करने के लिए भेजा । अक्षयराज नें उन रानियों के शौर्य की गाथा और इसके पूर्व में हुए लड़ाईयों का हस्र सुनकर उसकी हिम्मत जवाब दें गयी । परन्तु सुल्तान के रहमो करम पर पलने वाले अक्षराज ने सत्ता के भूख के वशीभूत होकर अपने पुत्रों भान और मान  को अपने साथ रखकर सुल्तान की विशाल सेना के साथ धौरहरा राज्य पर आक्रमण कर दिया । धोखे से अचानक युद्ध हुआ ,इस अप्रत्याशित आक्रमण से महारानी आश्चर्यचकित हो गयी । इनकी सैन्य टुकड़ी तुलना में कम थी ,परंतु जो सैनिक थे वे शूर वीर साहसी और निडर थे । भर महारानी के एक आवाज पर देश के लिए जान की आहुति देने को तैयार रहते थे । आकस्मिक आक्रमण से  सैनिको में भगदड़ सी मच गयी । जबतक वे शस्त्रागार तक पहुंचते कि उसके पहले ही दुश्मनों के भयंकर आक्रमण ने उन्हें सम्हल्ने का मौका ही नहीँ दिया । भीषण संग्राम हुवा । अन्ततः पूरा धौरहरा  सैनिकों के लाशों से पट  गया । दोनों भर राजभर रनियां युद्ध भूमि लड़ते लड़ते शहीद हो गयी । 

धौरहरा के किले पर मान का कब्जा हो गया । झीपी खान भी दूसरे लड़ाई में हार गया और उसका राज्य भान  को मिला । इस प्रकार भारतीय इतिहास भर वीरांगनाओं से भरा पड़ा है । परंतु अपना इतिहास लिखने वाले तथा किराए के इतिहासकारों ने भर क्षत्रिय राजभर समाज के इतिहास को दबाने में कोयी कौर कसर नहीँ छोड़ी है । तभी तो इस घटना में पराजित रानियों के नाम का उल्लेख इतिहासकार ने नहीँ किया है । उपरोक्त दोनों रानियों का नाम स्थानीय जनश्रुतियों पर आधारित है ।  बस भारशिव भरो को अपना इतिहास जानने की जरूरत है धन्य है व राजभर समाज।अगर वीडियो पसंद आई हो तो ज्यादा से ज्यादा शेयर करें  


लेखक 

 रामचंद्रराव राजभर

गोरखपुर से

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