आज तक का सबसे बड़ा इतिहास महाराजा सुहेलदेव राजभर का




 यह कहानी शुरू होती है बहराइच से

जिस भारत भूमि पर जन्मे एक महान योद्धा पराक्रम शुरवीर 

जिसका नाम सुहेलदेव राजभर था। कुछ गद्दार इतिहासकारों ने इन्हें भुला दिया ,उन गद्दारों को सम्मान मिला जो सम्मान के लायक नहीं थे

लेकिन आज हिंदुस्तान का हर बच्चा बच्चा राजा सुहेलदेव राजभर का चर्चा कर रहा है।

बहराइच शहर से लगभग तीन किलोमीटर उत्तर की ओर एक विशाल सूर्यकुंड भव्य सूर्य मंदिर था। वहीं पर बालार्क ऋषि नाम के महात्मा रहते थे, जो महाराजा सुहेलदेव राजभर के गुरु थे। सुहेलदेव को धनुष विद्या, शब्दभेदी बाण चलाना, तलवार चलाना, गदा युद्ध व भाला फेंकने में विशेष दक्षता प्राप्त थी। नदी में तैरने का भी शौक था। शेरों का शिकार तीर एवं तलवार से करना उनके लिए एक साधारण सी बात थी। गुरु के आदेशानुसार 25 वर्ष की आयु तक इनकी माता के अतिरिक्त कोई महिला समक्ष नहीं पड़ सकी थी। वह उच्च कोटि के भर शासक थे। इनके समय में लोग घरों में ताला लगाने की आवश्यकता नहीं समझते थे।


महमूद गजनवी के उत्तरी भारत को १७ बार लूटने व बर्बाद करने के कुछ समय बाद उसका भांजा सलार गाजी भारत को दारूल इस्लाम बनाने के उद्देश्य से भारत पर चढ़ आया । वह पंजाब ,सिंध, आज के उत्तर प्रदेश को रोंद्ता हुआ बहराइच तक जा पंहुचा। रास्ते में उसने लाखों हिन्दुओं का कत्लेआम कराया,लाखों हिंदू औरतों के बलात्कार हुए, हजारों मन्दिर तोड़ डाले। राह में उसे एक भी ऐसाहिन्दू वीर नही मिला जो उसका मान मर्दन कर सके। इस्लाम की जेहाद की आंधी को रोक सके। बहराइच अयोध्या के पास है के राजा सुहेल देव राजभर अपनी सेना के साथ सलार गाजी के हत्याकांड को रोकने के लिए जा पहुंचे । महाराजा व हिन्दू भर वीरों ने सलार गाजी व उसकी दानवी सेना को मूली गाजर की तरह काट डाला । उसकी भागती सेना के एक एक हत्यारे को काट डाला गया। राजा सुहेलदेव भर। भारशिव क्षत्रियों की सेना भूखे शेर की भांति टूट पड़े थे। इन कुर्र विदेशी अत्याचारीयो पर।जिस देश से आए थे ।उस देश का एक एक घर का चिराग बुझ गया था। कहां जाता है की महाभारत के बाद अगर कोई दूसरी लड़ाई इस भारतवर्ष में लड़ी गई।वह राजा सुहेलदेव भर की लड़ाई लड़ी गई।


महाराजा सुहेल देव राजभर ने अपने धर्म का पालन करते हुए, सलार गाजी को जलते हवन कुंड में फेक लिये तब से वह प्रेत योनि में आ गया ।और लोग सबसे ज्यादा सलार गाजी के मजार पर जाते हैं

भारशिव भर क्षत्रिय 

 महाराजा सुहेलदेव राजभर जी 

का इतिहास भारत देश गौरवपूर्ण एवं साहसपूर्ण , देशभक्त के रूप में अमर रहा है। जिसे हिन्दुस्तान मे कभी भुलाया नहीं जा सकता। महमूद गजनवी भारतदेश को  बार बार आक्रमण किया ।और यहां कि यथाथ संपत्ति लूट कर अपने देश ले गया।एवं मथुरा, थानसेर, कन्नौज , व सोमनाथ के अति समृद्धशाली मंदिरों को तोड़ने एवं लुटने मे सफल रहा। सोमनाथ मंदिर को लुटने मे महमूद गजनवी का भांजे सैय्यद सालार मसूद  ने भी भाग लिया था। महमूद गजनवी की मृत्यु 1030 ई0 के बाद महमूद  गजनवी के भान्जे सैयद सालार मसूद ने उत्तर भारत में इस्लाम का विस्तार करने एवं हिन्दुओं को जबरन मुसलमान बनाने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली थी।  लेकिन 10 जून 1034 ई0 को बहराइच के युद्ध में महाराजा सुहेलदेव राजभर के हाथों से सैय्यद सालार मसूद गाजी बुरी तरह मारा गया ढ़ाई लाख सैनिकों के साथ।  इस्लामी सेना की इस पराजय के कारण पुरे वि्श्व मे ऐसा पराक्रम से भय व्यापत हो गया कि भारतवर्ष में 300 वर्षों तक किसी भी विदेशी मुस्लिम आक्रमणकारियों का  भारत देश में आक्रमण करने का साहस पैदा नहीं हुआ । ऐसा महाराजा सुहेलदेव राजभर जी ने पराक्रम, एवं वीरता का परिचय हिन्दुस्तान की धरती पर दिया था। लेकिन शर्म आती है हिंदुस्तान के ऐसे लोगों पर । वीर पराक्रमी योद्धा को कैसे भूल गए।

ऐतिहासिक सूत्रों के अनुसार श्रावस्ती नरेश राजा प्रसेनजित ने बहराइच राज्य की स्थापना की थी।जिसका प्रारंभिक शुद्ध नाम भर राइच था। इसी कारण इन्हें बहराइच नरेश के नाम से भी संबोधित कियाजाता था। इन्हीं महाराजा प्रसेनजित को माघ मांह की  बसंत  पंचमी के  दिन 18 फरवरी 1009 ई. को एक पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई जिसका नाम सुहेलदेव भर  रखा गया । अवध एवं बहराइच  गजेटीयर के अनुसार इनका शासन काल1027 ई. से 1077 तक स्वीकार किया गया है । वे जाति क हिन्दू भर राजभर थे,महाराजा सुहेलदेव राजभर को  नागवंशी, भारशिव, क्षत्रिय एवं भर/ राजभर कहा जाता है। महाराजा सुहेलदेव राजभर का साम्राज्य पूर्व में गोरखपुर  तथा  पश्चिम में  सीतापुर तकफैला हुआ था। गोंडा बहराइच, लखनऊ, बाराबंकी, उन्नाव व लखीमपुर इस राज्य की सीमा केअंतर्गत समाहित थे । इन  सभी  जिलों  में  राजा  सुहेल देव  राजभर के सहयोगी  राजभर  राजा  राज्य करते  थे । जिनका नाम इस प्रकार है . रायसायब भर   रायरायब   . अर्जुन  भारशिव  भग्गन  भर . गंग  भर .मकरन  . शंकर  भर  करन  . बीरबल राजभर . जयपाल राजभर  . श्रीपाल भर . हरपाल  . हरकरन  . हरखू  नरहर  भल्लर राजभर. जुधारी    नारायण   भल्ला भारशिव . नरसिंह भर तथा .कल्याण राजभर ये सभी वीर राजा महाराजा सुहेल देव राजभर के आदेश पर धर्म एवं राष्ट्ररक्षा हेतु सदैव आत्मबलिदान देने केलिए तत्पर रहते थे। महाराजा सुहेलदेव राजभर एक बहुत बड़े सामंत थे।

हमारे देश की ये वह पवित्र धरती है जो विदेशियों की गुलामी में कभी नहीं रही , 

यदि अल्पकाल के लिए रहा भी तो उसे बहुत शीघ्र ही हमारे वीर क्षत्रियों योद्धाओं ने स्वतंत्र करा लिया । इस क्षेत्र में हमारे भगवा ध्वज को उतारने का साहस किसी को नहीं हुआ और वह बड़ी शान से लहराता रहा । निश्चय ही इसका श्रेय हमारे उन उन तमाम भारशिव भर योद्धाओं , वीरों , बहादुरों को जाता है जिन्होंने अपना प्राणोत्सर्ग कर करके यहां पर भारतीय स्वाधीनता को सुरक्षित रखा।

 आज हमारा राष्ट्रीय दायित्व है कि अपने ऐसे योद्धा और वीरों की गाथा न केवल इतिहास में सुरक्षित हों बल्कि वे देश के कोने – कोने में फैलनी चाहिए ।

ये ऐसे राजभर योद्धा रहे जिन्होंने मुगलों को भारतीय वीरता का परिचय कराया ।और उन्हें यह सोचने पर विवश किया कि भारत में ऐसे वीर हैं जो उन्हें रात को नींद नहीं आने देते और दिन में चैन नहीं लेने देते ।

 गाजर मूली की तरह मारना काटना आरंभ कर दिया । धरती मुगलों के खून से लाल हो गई । 

 सैयद सालार गाजी की सारी सेना काट कर फेंक दी गई । हमारे योद्धाओं ने मुगलों को पराजय की धूल चटा दी ।

। यह युद्ध भारत के उन गिने-चुने युद्धों में से एक है जिसने इतिहास की धारा को बदलने का कार्य किया । इस युद्ध में यद्यपि कुछ वीरगति को प्राप्त हुए परंतु मुगलों को भी नानी याद आ गई।

उस युद्ध में भी मुगलों को भारी क्षति उठानी पड़ी थी । हमारे भारशिव भर योद्धाओं ने अपने अनेकों बलिदान देकर मातृभूमि की रक्षा करने में सफलता प्राप्त की थी।

इस शूरवीर शासक ने मुगलों को अपने राज्य से खदेड़ने की ऐसी सफल रणनीति बनाई कि मुगलों को 300 वर्ष तक भारत पर आंख उठाकर  देखने की हिम्मत नहीं हुई

राजभर शासकों ने न केवल अपनी धरती को फिर से प्राप्त कर लिया बल्कि अपने खोए हुए सम्मान भरताज को भी प्राप्त कर लिया । 

राजा सुहेलदेव राजभर ने तुर्क सेना के दांत खट्टे कर दिए थे। यह एक ऐसे योद्धा की कहानी है 

जिसने अपना बहुत कुछ गंवाकर मातृभूमि की रक्षा की और शानदार नेतृत्व तथा साहस का भरताज का परिचय दिया, जिसकी तुलना नहीं की जा सकती।'' त्रिपाठी ने कहा कि पुस्तक लिखने के पीछे का विचार एक प्रेरक कथा को सामने लाना था ।जिसकी भारतीय इतिहास के पन्नों में अनदेखी की गयी है

 जिसे भारशिव भर वीर योद्धा सुहेलदेव के नेतृत्व में योद्धाओं ने सैयद सालार की सेना को गाजर मूली की तरह काट फेंका,

अपने इन भारशिव वीर योद्धाओं की कहानियां प्रत्येक विद्यालय में बच्चों को बढ़ाई जानी चाहिए । जिससे कि उनके महान कार्य को उचित सम्मान दिया जा सके.... 

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