भरो की वीरता अब पूरे भारत में गुजेगी

 


अमर बहादुर सिंह अमरेश अपनी पुस्तक राज कलश एवं समाचार पत्र स्वतंत्र भारत 16 अक्टूबर सन 1966 में उल्लेख किया है कि- मध्य भारत में जहां भी  पहुंचिए भार शिवो(भरो) का कोई ना कोई भग्नावशेष मिल ही जाएगा. कहीं दुर्ग हैं, कहीं टीले हैं, कहीं खंडहर है तो कहीं देवस्थान हैं. लगता यही है कि मुगल शासकों को छोड़कर सबसे अधिक भग्नावशेष किसी राजवंश के प्राप्त होते हैं तो वह केवल भरो के हैं


 इन मुर्दा टीलो, दुर्गों, खंडहरों और देव स्थानों की भग्न प्रतिमाओं में कितनी महत्वपूर्ण सामग्री जो ऐतिहासिक है छिपी है इसका अनुमान लगाना कठिन है. गांव-गांव में भार  शिवो( भरो) के स्मृति चिन्ह इसके साक्षी है कि मध्य भारत में इनका कितना व्यापक और सुदृढ़ साम्राज्य था,


 इन टीलों में एक विशेष प्रकार की ईटों, बर्तनों के टुकड़े और राख के ढेरों में दुर्लभ पुरातत्व छिपा है सन 1976 ईस्वी में रायबरेली जिले के सलोन तहसील के अंतर्गत एक छोटे से गांव डीहवा के टीले कि जब परगना अधिकारी श्री अमिय चतुर्वेदी की मौजूदगी में खुदाई हुई तो उसमें ऐसे नक्काशी दार बर्तन टुकड़े नीव आदि मिले जो भरो के माने गए हैं बनारस में इन लोगों ने 10 अश्वमेध यज्ञ किया जो आज दशाश्वमेध घाट के नाम से प्रसिद्ध है इनका राज्य एटा मथुरा कन्नौज फर्रुखाबाद उन्नाव प्रतापगढ़ रायबरेली सुल्तानपुर फैजाबाद जौनपुर और बनारस तक फैला हुआ था कालांतर में इतिहास ने पलटा खाया गुप्त मौर्य और हर्ष कालीन भारत में यह भर इधर-उधर बिखर गए इस युग में भी यह लोग छोटे-छोटे किंतु सुदृढ़ दुर्ग बनाकर शासन करते थे.


: इस युग में इनका एकछत्र राज ना था इसलिए संपूर्ण छोटे-छोटे टुकड़े एवं राजाओं में विभक्त हो गया था भारशिवो(भरो) को कोई भारत का मूल निवासी कोई भर बोथिया  जाति के अहिरों से संबंध जोड़ता है. भर जाति भारशिव ही है जो दयनीय दशा में जीवन व्यतीत कर रहे हैं. यह लोग अपनी जाति के आगे अपने पुराने राज मोह को नहीं छोड़ पाए और अपने को राजभर कहने लगे. 12 वीं शताब्दी तक बनारस राज्य इन्हीं के अधिकार में था कहा जाता है कि सारनाथ के पास चंदो तालाब इन्हीं ने बनवाया था. यह लोग नाग और सूर्य की पूजा करते थे शकों के पराजय के बाद उस क्षेत्र में इनका अखंड राज्य स्थापित हो गया था. गहरवार ओं के पराजय के बाद आक्रमणकारी तुर्कों से भरो ने डटकर लोहा लिया था लगभग 200 वर्षों तक युद्ध चलता रहा.


: तुर्की शासकों ने इस वीर जाति और रण बांकुरो के विनाश में कोई कसर नहीं उठा रखी थी सुल्तान अल्तमश के पुत्र ने बहराइच के भरो के विनाश करने में डेढ़ लाख सिपाही कटवा दिए थे. बलबन ने कलिंजर में ऐसा ही किया था जौनपुर के इब्राहिम शाह शर्की ने भरो का विनाश करने में कोई कसर ना उठा रखी थी सेमरौता के राजा केसरी सिंह ने रायबरेली के हरदोई नामक स्थान में  भरो को परास्त कर शेरपुर कटरा बसाया. इलाहाबाद जिले के पास कड़े नामक स्थान को भरो के राजा कड़े चंद्र ने बसाया था  इनके भाई मानिकचंद ने मानिकपुर बसाया था जिनके दुर्गा आज भी खंडहर के रूप में मौजूद हैं जायस का पुराना नाम उजालक नगर था जिसे भरो के राजा उद्योन ने बसाया था जौनपुर के इब्राहिम शाह शर्की को रायबरेली, डलमऊ तथा सुदामन पुर नामक स्थान पर भरोसे कठिन लोहा लेना पड़ा था. 


डलमऊ के राजा डलदेव भर का दुर्ग अत्यंत सुदृढ़ था जिसके भग्नावशेष आज भी विद्यमान हैं इस राजा ने हिजरी 804 अर्थात 14 सदी के लगभग यहां शासन किया था डलमऊ के किले वा डलदेव  के शासन के विषय में रायबरेली  जिला गजेटियर पृष्ठ 163 तथा डब्ल्यू सी  बैनेट की रिपोर्ट में उल्लेख हुआ है.


Dalmou which have fallen into decay ofter "Bhar war"This fort stands on the cliff about 100 Feet high over hanging the Ganges.In shape it is irregular dudrangle.with its face on the river forming one of  its lang ... . 


 यह किला रायबरेली में भरो का सबसे बड़ा स्मृति चिह्न है यह किला नगर के पश्चिमी छोर पर है .

 और किला बाजार के नाम से प्रसिद्ध है बैसवारे की सीमा के निकट एक भरहला बना हुआ है आज भी इसी नाम से प्रसिद्ध है यह काफी ऊंचा और चक्कर दार है काकोरन के पास सुदामनपुर के टीले की वैसी ही रूपरेखा है जैसे डलमऊ किले की. सुदामन पुर के युद्ध के विषय में मुस्लिम इतिहासकारों ने लिखा है कि इस युद्ध में इस्लाम की तलवार की प्यास भरो के रक्त से बुझी थी. इससे स्पष्ट हो जाता है कि इब्राहिम शाह शर्की के साथ सुदामनपुर में भरो ने कितना भयंकर युद्ध किया होगा. भरो के दुर्ग उपासना स्थल टीले उनकी वीरता राज्य और पुजारी होने का स्पष्ट प्रमाण देते हैं दरिया खेड़ा में एक कुएं की खुदाई मैं गंगा जमुनी मूर्ति तथा शिलालेख का प्राप्त होना इसका प्रमाण है भर राजा चंद्रिका देवी के महान पुजारी थे बक्सर दुर्ग के समीप चंद्रिका


: कड़े के निकट शीतला देवी डलमऊ तथा खतौली में काली की मूर्ति जो आज भी मौजूद है इस बात का प्रमाण है हर हर महादेव, जय हो भारशिव भर क्षत्रिय.

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