भारशिव नागवंश(भर/राजभर)की देवी अरई की दिदिया देवी का इतिहास 🚩🚩🚩लगभग 600 सौ वर्ष पुराना इतिहास चौदहवीं शताब्दी का 🚩🚩🚩[सौ लखा देवी (ठकुराइंन देवी) ]इनको अरई की दिदिया भी कहाँ जाता है,,, इनका इतिहास भारशिव राजवंश (भर/राजभर) से सम्बन्धित है,,, ये इलाहाबाद जिले के बरौत क्षेत्र के भारशिव वंश(भर/राजभर) के राजा की राजकन्या थीं,,, इनका विवाह विशेन जमीदार राजा के पुत्र से हुआ था,,,
जबकि भारशिव (भर/राजभर) क्षत्रिय और विशेन राजपूतों में आपसी वैभनस्ता थी, ये विशेन राजपूत मझौली देवरियाँ रियासत के परिवार के थे, मझौली में कभी भारशिवों का अधिपत्व होता कभी विशेनों का,,,ये दोनों राजवंश जहाँ रहते परस्पर आपस में युद्ध करते रहते थें,,, इस आपसी दुश्मनी का का लाभ मुस्लिम शासकों ने उठाया क्योंकि भारशिव नागवंशी(भर/राजभर) क्षत्रिय मुस्लिम शासकों का घोर विरोधी थें,,, विशेन जमींदार राजा का संबन्ध मुस्लिम शासकों से था,,,विशेन जमींदार राजा के पुत्र का प्रेम भारशिव नागवंश के राजकन्या से हो गया था,,,
जब राजकुमार गंगा नदी पार परानीपुर बासुरी बजाता था तो राजकुमारी राजकुमार से मिलनें नाव से उस पार चली जाती थीं,,, आपसी दुश्मनी होनें के बावजुद भारशिव राजा पुत्री की मोह में विवाह करनें को तैयार हो गयें,,, विवाह के पश्चात मुस्लिम शासकों नें भारशिव वंश को छल से हरानें का हल ढूढ़ रहे थे, मुस्लिम शासकों नें भारशिव वंश को हरानें के लिए विशेन जमींदार राजा से मदद की गुहार लगाई और विशेन राजा नें अपनें पुत्र से कहाँ कि अपनी पत्नी से गुपचुप तरिके से पूछो कि भारशिव वंश को कैसे हराया जा सकता है, राजकुमारी अपनें पति और ससुराल वालों के चाल(षड्यंत्र)को समझ नही सकी और अपनें भारशिव वंश की बढ़ाई करते हुए राजकुमारी नें अपनें पति से कहाँ कि हमारे वंश को ताकत के बल से नहीं हराया जा सकता है छल से हराया जा सकता है क्योकि भारशिव वंश भारत का सबसे मजबूत राजवंश था,,, राजकुमारी नें अपनें पति से बताया कि होली के दिन हमारे वंश के लोग तलवार नहीं उठाते हैं, दारू मांस मदिरा पीकर मस्त रहते हैं और दुश्मन को भी दोस्त समझते हैं,,, इस राज वाली बात को मुस्लिम शासक इब्राहिम शाह शर्की तब पहुँचा दिया जाता है,,, मुस्लिमों के षड्यंत्र में विशेन राजपूतों नें भारशिवों को हरानें के लिए मुस्लिमों का साथ दिया,,, इस सहयोग में जौनपुर का इब्राहिम शाह शर्की नें विशेन जमींदार राजा को बरौत का राज्य देनें का लालच दिया,, मुस्लिम शासकों, विशेन जमींदार राजा मोनस राजपूतों के साथ मिलकर भारशिव राजा बरौत के किले से लेकर भारत देश में जहाँ-जहाँ भारशिवों का साम्राज्य था
एक साथ होली के दिन रात में 12बजे बहुत बड़ा हमला किया गया,,, भारत देश के राजवंश में इतना बड़ा हमला किसी भी राजवंश के साथ नहीं हुआ था,,, इस आक्रमण में भर सिपाही और राजपरिवार को सम्भलनें का मौका नहीं मिला अचानक हुए युद्ध से नशे में बुत भर सैनिक इनकी संगठित सेना का सामना नहीं कर सकें और फसल की तरह काट दियें गयें,,, जब ये बात राजकुमारी को मालूम हुआ कि मेरे साथ मेरे ससुराल वालों नें छल किया हमारी एक गलती से हमारे राजपरिवार के साथ-साथ हमारे कुल वंश के सांम्राज्य का सर्वनाश हो गया,,, इस मंजर को देखनें के लिए राजकुमारी परानीपुर से गंगा नदी पार कर अपनें परिवार अपनें कुल का सर्वनाश देखकर कूपित हो गई और क्रोध में अपनें ससुराल (विशेनों) को श्राप दिया कि जिस राज्य के लालच में मेरे कुल का सर्वनाश हुआ है वैसे ही तुम्हारे वंश का भी नाश होगा और राजकुमारी नें अरई नाम के स्थान पर जो गंगा नदी के किनारे है वहीं पर आत्मदाह कर लिया,,, आज उन्हें अरई की दिदिया, ठकुराईन देवी सौ लखा देवी के नाम से प्रसिद्ध हैं और उनकी मंदिर है,,, विशेनों नें श्राप से मुक्ति पाने के लिए मृत्यु के स्थान पर जाकर क्षमा माँगी अपनी गलती का एहसास किया कि हमारी कमी (लालच) से हमारे एक क्षत्रिय कुल का लगभग अन्त हो गया,,, उस क्षेत्र के विशेन राजपूतों नें अपनी गलती का पश्चताप करनें के लिए किसी के ऊपर प्रहार करने के लिए तलवार न उठाने की कसमें खाई,,, तलवार की जगह लठ् का प्रयोग करने का निर्णय लिया,,, राजकुमारी नें दर्शन दिया और कहाँ कि विशेनों से कोई भी शुभ कार्य करने से पहले मेरी पूजा करोगे तो तुम्हारा वंश चलेगा उसी समय से ठकुराईन देवी की पूजा होती है,,, विशेन राजपूत ठकुराईन देवी जी के मंदिर का प्रसाद आज भी नहीं खाते हैं,,, वहाँ पर कोई बकरे की बली दी जाति है तो रुपया देकर उस प्रसाद को खा सकते हैं,,,
इस मन्दिर में बहुत मान्यता है,,, एक बार बंगाल का बहुत बड़ा जादूगर नाव से हर धार्मिक स्थल देवी पर मन्तर मारता हुआ कड़े तक गया जब वापस नाव के रास्ते अरई देवी के स्थान से गुजर रहा था तो उसकी नाव रुक गई और जब उसने तन्त्र विद्या का प्रयोग करना चाहा तो विफल हो गया तव देवी जी से क्षमा माँगा तब देवी जी उस जादूगर से कहाँ कि मेरे स्थान पर नदी से चार पत्थर लाकर रख दो उसनें लाकर रखा और चला गया,,, प्रमाणिकता के लिए आज भी अरई की दिदिया, ठकुराईन देवी, सौ लखा माता जी की मन्दिर विद्यमान है,,, यहाँ दूर-दूर से लोग दर्शन करने के लिए आते हैं,,, अरई गाँव के निवासी विशेन राजपूत श्री प्रकाश सिंह जी नें भी अरई की दिदीया के बारे में बताया है और ठाकुर प्रवीण सिंह जी बातों से सहमत हैं कि हमारे पूर्वजों नें भी यही सच्ची घटना की कहानी बताई थी,,, इस ऐतिहासिक घटना को सोध करनें वाले श्री ठाकुर प्रवीण सिंह जी को कोटि-कोटि नमन् बन्दन 🙏🙏🙏सोध कर्ता श्री ठाकुर प्रवीण सिंह जी लेखक मनोज राय सभी भारशिव क्षत्रियों से विनम्र निवेदन करते हैं कि आप अपनें पूर्वजों के बलिदान को ब्यर्थ होनें मत जाने दिजियें,अमर इतिहास आपकी पूँजी है इस पूँजी को आपके पूर्वजों नें अपनें प्राणों की आहुति देकर कमाई है, आप अपनें इतिहास रूपी पूँजी को बचा लिजियें,,,आपके पूर्वज महान थे आप उन्हीं महान योद्धाओं की संन्तान हैं जिन्होनें आजीवन अपनें देश की अपनें धर्म की अपनें संस्कृति की रक्षा के लिए विदेशी आक्रांताओं से लोहा लेते रहें, हे! भारशिव वंश के क्षत्रियों बस आपका समय बदला है खून वहीं खानदानी हैं, आपका इतिहास इतिहास के पन्नों में भरा पड़ा है🚩🚩🚩जय माँ भवानी🚩🚩ओम् भारशिवाय




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