महारानी किंतमा ( 912-925 ई . ) बाराबंकी भरों या राजभरों के इतिहास में स्त्रियों का या उनकी रानियों का उल्लेख मिलता है,
बाराबंकी जिले का कुन्तौर नगर एक ऐसी महारानी के इतिहास को आज भी जीवित रखे हुए है जो राजभर - कुल की गौरव - गरिमा थी . इस महारानी का नाम कुंतमा या कुंता था,
अंग्रेज इतिहासकारों ने इस महारानी का नाम कहीं - कहीं किंतमा ( Kintama ) भी लिखा है,
यह महारानी बाराबंकी के महाराजा बारा की स्त्री थी . इतिहासों में उल्लेख मिलता है कि महारानी किंतमा महल के अन्दर कैद रहने वाली महारानियों में से नहीं थी,
वह महाराजा बारा के साथ आखेट खेलने भी जाया करती थी : जंगली जानवरों का शिकार उसका प्रमुख शौक था . खुंखार सिंहों को मारने में उसे अति आनन्द का अनुभव होता था,
निर्भीक निडर , बेखौक महारानी किंतमा बारा के साथ अनेक युद्धों में भी भाग लिया था . सूर्यवंशियों को पराजित करने में और बारा की राजस्थापना में किंतमा ने विशेष योगदान दिया था . किंतमा ने कहा जाता है कि एक “ किंतमा नारी सेना " का भी गठन किया था,
किंतमा नारी सेना उत्तम घोड़ों से लैस थी . नारियों को सर्वप्रथम घुड़सवार की शिक्षा दी जाती थी . कुन्तौर नगर में लगभग तीन हजार घोड़ों की एक घुड़साल थी . किंतमा नारी सेना को महाराजा बारा की सेना का एक प्रमुख अंग कहा जाता है,
राम नगर , रुदौली , सिद्धौर , समौली और बहूराजमऊ सेना के प्रमुख केन्द्र थे . कहा जाता है कि रामनगर के भर राजा सारंगधर और उसके छोटे भाई कपूरधर ( Sarangdhar & Kapurdhar ) लगभग 1277 ई . में तथा बभनौटी वर्तमान नाम बौन्डी ( Baundi ) के भर राजा दीपचंद ने परस्पर अपनी रानियों को किंतमा के पदचिन्हों पर चलकर सेना के कार्य संचालन में भी भागीदार बनाया था . रामनगर तथा बौन्डी राज के आपस में वैवाहिक संबन्ध थे , जहां राजकुमारियों को भी शस्त्र की शिक्षा दी जाती थी . सुहेलदेव के वंशज पूरनमल की कन्या दुर्गा ( 1226 ई . ) तथा उसकी अन्य छः पुत्रियों को गुरु गोरखनाथ के शिष्य रत्ननाथ ने अस्त्र - शस्त्र की शिक्षा दी थी . इन्हीं के बल पर पूरनमल के पुत्र नागुल ने पाटन कोट पर पुनः कब्जा किया था . राजभर रानियों की प्रेरणादायिनी क िंतभा थी . इलियट ने बहराइच जिले के विषय में एक कहानी दी है . रामनगर के भर राजा सारंगधर ( 1277 ई . ) की एक स्त्री अहिरिन थी . सारंगधर का वध जम्बू से आये रायकवार परिवार के एक सेनानायक ने किया था . जिनका नाम सल था . सल ( Sal ) ने ही बभनौटी का निर्माण किया . अवध गजेटियर , भाग एक के पृष्ठ 110-15 पर इसका विस्तृत वर्णन किया गया है . " I may mention a traditionary rite in the district , by which certain customary offices are always performed by the children of this caste by an Ancin , the successor and representative of the widow of a Bhar Raja , who was slair founder of Bhaundi house . The Bhar Princes is said to have gon to Delhi ic aptain redress for the murder of her lord and to have only desisted from pers .ing her vegeance to its . 145दिलवाया . ond on the promise of Raikwar to allowher to perform the rito alluded to . " | सारंगधर की इस रानी का नाम नहीं दिया गया है . यह रानी सारंगधर की मृत्यु के बाद दिल्ली के शासक के यहाँ उसकी क्षतिप्रर्ति के लिए गयी थी . बलबल ने 20,000 टका उसखी को । से लगभग 700 वर्ष पहले जम्बू से आये तीन भाइयों सल , बल और भैरवानन्द में भैरवानन्द राजा सारंगधर द्वारा बनवाये गये एक कूप में गिरकर मर गया , शेष दोनों भाई सारंगधर के राज में रहकर नौकरी करने लगे , जो आगे चलकर विश्वासघाती बन गये और राजा का कल्ल कर डाला . बाराबंकी जिले पर किंतमा ने जो दबदबा बनाया था वह धीर - धीरे यहाँ तो खत्म होने लगा पर अन्य राजधानियों में लोग किंतमा के शौर्य की सराहना कर उसके नक्से - कदम पर चलने लगे . महसी , नानपारा , भिनगा , इकौना , चर्दा , बांगरमऊ इत्यादि नगरों का नामकरण किंतमा के पति बारा के शासन काल में हुआ . महारानी किंतमा को बहुरानी भी कहा जाता था , उन्नाव जिले के बहुराजमऊ ( Bahurajmau ग्राम , जो कि परगना हरहा ( Harha ) में स्थित है , किंतमा के नाम पर रखा गया है . अवध गजेटियर के पृष्ठ 205 पर ऐसा कहा गया है कि " A village in the pargana Harha , 14 miles south - east of the Unnao on the road from that to wn to Rai Barell . The Mahara Kahar mentioned in pergana Harha obtained the land surrounding the place from Raja Tilokchand and called it after the Bahu Raja or the Raja's wife , who selected the spot for them . " " बहराइच का राजा तिलोकचन्द महारानी किंतमा की यादगार में जिसे बहुरानी कहा जाता था के नाम पर इस गांव का निर्माण करवाया . कुमाऊं जिले के असकोट ( Askot ) गांव के कट्युरियों का उपनाम ( Title ) राजबर या राजभर है . यह उपनाम किस तरह ग्रहण किया गया इसका उल्लेख एक ताम्रलेख में किया गया है . इस लेख से ज्ञात होता है कि बद्रीनाथ का नामकरण बगेश्वर से हुआ है . इसे राजभरों ने बनवाया था . 1202 ई . में इन्द्रदेव राजवर ने इसे अनुदान दे दिया . इसका मलिकाना हक हरिदत्त त्रिपाठी को मिला . गहरवाल वंश का वर्णन करते समय एटकिंसन एडविन ने इसका वर्णन इस प्रकार किया है । A copper Plate in possession of Haridatta Tripathi of Darimthauk in patti Talla Katyur records the grant by Indradeo Rajbar , in the year 1202 A.D. of certain hands which were registered before Badrinath , the temple of the name of Bageswar . Rajbar was the name given to the heir apparent amongst the Katyuris . " ? कुमाऊँ जिले के एक प्रसिद्ध गांव मनिल ( Manil ) के कट्युरियों को पाली भाषा में मनुरल ( Manural ) कहा जाता है . ये मनुरल लाखनपुर कट्युरी परिवार से आकर यहाँ निवास करने लगे . Gazetter of the province of Oudh , 1877 , Voll . , P.110 . The Himalayan District of the NWP of India , Vol . II . ( 1884 ) P. 520 - by EDVIN T. ATKINSON 146

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