एक महान चक्रवर्ती सम्राट उज्जैन नरेश राजा विक्रम सेन के बारे में दास्तान



मैं आज आपको एक ऐसे चक्रवर्ती सम्राट के जीवन चरित्र शौर्य साहस पराक्रम त्याग बलिदान राष्ट्रभक्ति जिंदादिली बहादुरी और भगवान शिव के परम भक्त भारशिव महाराजाओं चक्रवर्ती सम्राटो से सुशोभित है ऐसे ही एक महान चक्रवर्ती सम्राट उज्जैन नरेश राजा विक्रम सेन के बारे में दास्तान लिखता हूं हमारे आदि राजा धृष्टि सेन के पुत्र राजा भर सेन हुए और राजा भर सेन के ही खानदान में नग ( पर्वत)के समान अचल अविचल और अटल इरादे वाले राजाओं को ही नागवंशी क्षत्रिय कहां गया! तथा भगवान सूर्य के समान इनमें तेज होने के कारण इन्हें सूर्यवंशी कहा गया। तथा भगवान शिव के पाल्प  होने के कारण इन्हें सर्व श्रेष्ठ भारशिव क्षत्रिय कहा गया इसी महान तथा प्रतापी वंश में एक राजा हुए जिन्हें गन्धर्व सेन के नाम से जाना जाता है ‌ इनके पिता देवराज इंद्र थे और इनकी माता इंद्राणी थी। जिन्होने सोनकक्ष से आगे गन्धर्व पुरी बसाई और वहां आज भी गंधर्व सेन जी का मंदिर  मौजूद है गंधर्व सेन के पुत्र का नाम महेद्र दित्य, या गर्द भिल्ल या गर्दभ कोश बताया गया उनको एक प्रथम पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जो कि  बिक्रम सेन या विक्रमादित्य नाम से सुविख्यात हुए।इनकी माता श्री का नाम देवी शौम्प दर्शना या वीरमति या मदन रेखा बताया गया गंधर्व सेन के पांच पुत्र बताए गए जिसमें विक्रमादित्य और भर्तृहरि 3 पुत्रों का आगे वर्णन करेंगे! विक्रम सेन या विक्रमादित्य का जन्म 2288   वर्ष पूर्व हुआ !विक्रमादित्य की 5 पत्नियां क्रमश: मलयावती, मदन लेखा ,पद्ममिनी, चेल और चिल्ल महादेवी, इनसे  दो पुत्र हुए विक्रम चरित् और विनय पाल दो पुत्रियां प्रियग मंजरी और वसुंधरा इनकी बहन नाम अज्ञात भांजा गोपीचंद्र हुआ! राजपुरोहित त्रिविक्रम वह वसुमित्र हुए मंत्री भट्टी या भट्ट भातृ मित्र और वह सिंधु थे सेनापति विक्रम शक्ति और चंद्र हुए‌ इनके नवरत्न राजवैद्य धनवंतरी, शप णक, अमर सिंह, शंकु ,बेताल भट्ट ,खटकर पर , महाकवि कालिदास, महान खगोल शास्त्री वराह मिहिर और बुरुज तथा उच्च कोटि के विज्ञान तथा गणितज्ञ और महान कवि भी थे, इन्होंने 100 वर्ष तक दुनिया पर राज किया तथा 57 ईशा पूर्व शकों को पराजित कर राज्य सीमा से बाहर खदेड़ दिया!उसी विजय की याद में शक संवत चालू करवाएं! और काशी की पवित्र भूमि भगवान विशेश्वर नाथ के ज्योतिर्लिंग की स्थापना कर विश्व प्रसिद्ध विश्वनाथ मंदिर का निर्माण कराएं उनके छोटे भाई राजा भर्तृहरि जी को मालवा राज्य मिला था लेकिन अपनी पत्नी से बिछोह हो जाने के कारण वे योगी बंन कर वर्तमान मिर्जापुर जिले के चुनार को उस समय भरपुर के नाम से जाना जाता था वहीं पर सिद्धि प्राप्त किए और चुनार किले पर जिंदा समाधि ले लिए! राजा विक्रमादित्य जी की न्याय व्यवस्था और लोकप्रियता उदारता ज्ञान तथा चरित्र के बारे में भविष्य पुराण, स्कंद पुराण कश्मीरी लेखक लेखक कल्हण की राजतरंगिणी आदि  ग्रंथों में विस्तृत वर्णन मिलता है प्राचीन अरब मिस्र सहित ईरान इराक इत्यादि संपूर्ण धरती पर एकछत्र शासन किए मशहूर अरबी पुस्तक शायरों ओलूम ओकुल के लेखक जर हम किंतोई ने बहुत ही मार्मिक ढंग से चक्रवर्ती सम्राट राजा विक्रमादित्य जी महराज के बारे में लिखते हैं की संपूर्ण धरती उनके नाम से सुपरिचित है ओकुल शिलालेख मैं उल्लेख है कि वह लोग भाग्यशाली हैं जो उस समय जन्मे और राजा विक्रमा के राज्य में अपना जीवन व्यतीत किए वह बहुत ही दयालु उदार और कर्तव्यनिष्ठ थे जो हर एक व्यक्ति के कल्याण के बारे में सोचते थे उन्होंने अपने पवित्र धर्म सत्य सनातन हिंदू संस्कृति को हमारे बीच फैलाया अपने देश के सूर्य से भी तेज विद्वान लोगों को यहां भेजा ताकि शिक्षा का उजाला पूरे विश्व में फैल सके इन विद्वान और ज्ञाताओ ने हमें भगवान की उपस्थिति और सत्य के मार्ग के बारे में बता कर एक परोपकार किया है। आदित्य शब्द देवताओं के लिए ही प्रयुक्त होता है अतः इस बात से हमें ज्ञात होता है कि विक्रमादित्य सर्वोपरि सर्वश्रेष्ठ भारशिव क्षत्रिय राजा थे।तुर्की की मशहूर  इस्तांबुल शहर की लाइब्रेरी में पुस्तक मकतबे इस्लामिया में ऐतिहासिक ग्रंथ में सम्राट विक्रमादित्य जी की की विस्तृत चर्चा है। मित्रों अब मैं  वह बात लिखता हूं जिस बात को राजा विक्रमादित्य की 32 सिंहासन बत्तीसी पुतलियों में से एक रत्न मंजरी नाम की पहली पुतली ने राजा भोज से राजा विक्रमादित्य जी के बारे में जो कहानी सुनाई वह इस प्रकार है अमरावती में एक राजा जो बहुत बड़ा शूरवीर पराक्रमी और महा दानी था धर्म सेन नाम का एक और बड़ा राजा हुआ उसकी चार रानियां थी एक थी ब्राह्मणी दूसरी थी क्षत्राणी तीसरी थी वैश्य और चौथी थी  शुद्र ब्राह्मणी से जो पुत्र पैदा हुआ उसका नाम ब्राह्मणीत क्षत्राणी से 3 पुत्र पैदा हुए 1- शंख 2-विक्रम सेन या विक्रमादित्य 3-भर्तहरि नाम रखा गया। वैश्य पत्नी से चंद्र तथा चौथी पत्नी शुद्राणी से धन्वंतरी का जन्म हुआ।पहली रानी का लडका ब्रह्मणीत जब बडा हुआ तब अपने पिता के राज से निकल कर धारपुर पहुंचा हे राजा भोज ,,,,राजन उस समय धारपुर के राजा तुम्हारे ही पिता थे।उस ब्रह्मणीत ने तुम्हारे पिता को। मार डाला और वहां का राजा बनाकर राज्य की कमान अपने हाथ में लेकर शासन चलाने लगा।और जल उज्जैन आया तो भगवान महाकालेश्वर के कोप का भाजन हो गया और वह मृत्यु को प्राप्त हो गया।और उसके मरने पर क्षत्राणी से पैदा दूसरा पुत्र शंख गद्दी पर बैठे। उसने कुछ बर्ष वाद उन्होंने  अपने छोटे भाई बिक्रम सेन या विक्रमादित्य को स्वेच्छा से राज गद्दी पर आसीन करा दिया।एक दिन राज्य के बड़ा राजा बाहुबली के बारे में जब राजा विक्रमादित्य को पता चला कि वो जिस गद्दी पर बैठे हैं वह गद्दी राज्य के सबसे बड़े राजा बाहुबल की कृपा से ही हैं पंडितों ने सलाह दिया कि राजन आप तो जग जानता है लेकिन जब तक राजा बाहुबल आप का राजतिलक नहीं करेंगे तब तक आप राज्य चलाने के लिए नग( पर्वत)की तरह अचल अविचल और अटल सम्राट नहीं बन पाएंगे आप राजा बाहुबल से राजतिलक अवश्य ही करायें तबा उनकी बात मानकर राजा विक्रमादित्य ने अपने सबसे ज्ञानी और विश्वसनीय सच्चे मित्र दूत वर्ण को लेकर राजा बाहुबल के पास गए तब उन्होंने राजा विक्रमादित्य का बहुत ही भव्य स्वागत सत्कार किया 5 दिन बीत गए तब राजा विक्रमादित्य से उनके मित्र दूत वर्ण ने कहां है मित्र जब विदाई के समय राजा बाहुबल आपसे कुछ मांगने को कहेंगे तो आप राजा से वह सिंहासन मांगना जिसको भगवान महादेव शिव शंकर जी ने सर्वप्रथम राजा इंद्रदेव को दिया उसके पश्चात इंद्र ने लोकप्रिय राजा बाहुबल को दे दिया उस सिंहासन में यह गुण है कि उस पर जो बैठेगा वह सात खंड नो दीपो पर राज करेगा उसमें बहुत से हीर जवाहरात जड़े हैं और उसके सांचे में 32 पुतलियां ढालकर लगाई गई  हैं। मित्र तुम उसी सिंहासन को अवश्य ही मांग लेना अगले दिन जब राजा बाहुबल विक्रमादित्य जी को विदा करने लगे तो उन्होंने वही तिलस्मी सिंहासन मांग लिया और प्रसन्न होकर राजा बाहुबल ने एक योग्य उत्तराधिकारी के रूप में राजा विक्रमादित्य को सिंहासन पर बैठा कर उनका राज तिलक कर दिया।और बडे ही प्रेम भावविभोर होकर आदर पूर्वक उन दोनों को बिंदा किये। राजा विक्रमादित्य ने लौटते समय राजा बाहुबल का चरण वंदन किये। वापस पहुंच कर सारी बातें अपने राज दरबार में जब बताने लगे।तव राज दरबारियों तथा प्रजा जनों में हर्ष की लहरें दौड गई।पूरे राज्य को शाही भोज पर आमंत्रित किए गीत संगीत का कार्यक्रम जो महीनों चलता रहा।उसी  सुनहरे पलों को चिरस्थाई बनाने के लिए उन्होंने अपने राज्य को समृद्भशाली और वैभवशाली बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण निर्णय लिये और अपने पूर्वजो की तरह ही अनेक महान्तम कार्य किये।भगवान शिव स्वयंभू विश्वेवर जी की कृपा से ही वे इतने समर्थ वान तथा परम यशस्वी सम्राट के रूप में सुविख्यात होकर विश्व विजेता विश्व प्रसिद्ध नायक बन गए अंत: अपने पूर्वजों के इष्टदेव भगवान शिव विश्वेश्वर विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग भव्य विश्व प्रसिद्ध मंदिर का निर्माण काशी बनारस की पवित्र भूमि पर 2,,0050 पूर्व कराये   में जिस मन्दिर को 1664ई० में मुगल आक्रमणकारी औरंगजेब ने सत्ता के मद में चूर होकर तोड़वाने के वाद सन् 1668मे ज्ञानवापी मस्जिद वनवा दिया जो हमारे समस्त सत्य सनातन हिन्दू धर्म संस्कृति के लिए एक बहुत बड़ा कलंक है जिस इस्लामिक मजहबी अतिक्रमण को हटाकर फिर से भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग स्थापित कर भबय मंदिर निर्माण कर दुनिया की हिंदू धर्म संस्कृति की राजधानी काशी नगरी को पुन; गरिमा मयी भोले शंकर का हर हर महादेव जय घोष ओर बम-बम बोल रही है काशी,,,,, की गीत को भारशिव क्षत्रियों की धार्मिक पौराणिक धरोहर को सहेजने संवारने  के लिए पूरी शक्ति झोंकते  हुए एक बार फिर से धर्म युद्ध लड़ने की आवश्यकता आन पड़ी है आइये-हम सब मिलकर एक सुंदर भव्य मंदिर बनाएं जिससे हमारे सत्य सनातन धर्म और संस्कृति के रक्षा हो सके-और हम उस पर अपने को गौरवान्वित महसूस कर सकें -क़लम से सर्व श्रेष्ठ भारशिव क्षत्रिय कुल भूषण राणा विजय भारशिव क्षत्रिय सूर्यवंशी युवा राष्ट्रीय अध्यक्ष राष्ट्रीय भारशिव क्षत्रिय महासंघ!9918079003

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