भूला जनपद बिखरा इतिहास पुस्तक व शोध क्या कहता है भरो के बारे में:- इतिहासकार मदनमोहन मिश्र
#भर #संस्कृति:-
बैसवारा क्षेत्र 790 ई.से 1200ई.जिन शक्तिशाली जांति का शासन रहा,वे #भर नाम से जाने गए।इनके सम्बंध मे श्री मदनमोहन मिश्र का कहना है। भर #शैव थें
परन्तु बाद मे उनको #शिवभर तथा #राज-भर दो शखाऐ हो गई,
शिवभर या #भारशिव हरिद्वार आदि से छोटी-छोटी विभिन्न रंगों वाली गोल मुर्तियों से भरी टोलियां कंधों पर लटका कर भ्रमण करते थें। और शैव मत का प्रचार करते थें।इनके पास डमरू तथा त्रिशूल रहता था ।यह मुर्तियों को गांव गांव बाटकर बट बृक्ष लगाते थे।
परंतु #राजभर शिवा या भवानी के उपासक थें।और तलवार के बल पर शासन करते हुऐ स्थान -स्थान पर जमकर रहते थें।
और शावत धर्म का प्रचार करते हुए नीम का वृक्ष लगवाते थे।इसलिये इन दोनो शाखाओं में कभी कभी भंयकर युद्ध हो जाया करता थे।
वैश्य क्षत्रियों को इस क्षेत्र में पैर जमाने के लिए #भर जांति से कई बार भंयकर टक्कर लेनी पडी।संघर्षों के इस परिणामो में भर जाति इस क्षेत्र से विलुप्त जैसे हो गई।
ऐसी मान्यता है कि आहिरों की भरावटिया शाखा ही #भरो की वंशज है जो कि आज भी इस क्षेत्र में बिपुल संख्या में निवास कर रहे है।बैसवारे में उक्त जातियों के अलावा हिंदुओं की प्रायः सभी जातिया न्यूनाधिक संख्या में निवास करती है...
जय भर -भारशिव /जय भवानी
हर हर महादेव




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