अल्देव राजभर और मल्देव राजभर
( 1432 ई . - 1459 ई . ) अल्देमऊ ( सुल्तानपुर )
राजा रामचन्द्र ने अवध के दक्षिणी भाग पर अपने छोटे पुत्र कुश को शासक घोषित किया . कुश ने गोमती नदी के पश्चिमी किनारे पर अपनी राजधानी बनायी . इस राजधानी का नाम कुशभावनपुर पड़ा . कालान्तर में इसका नाम बदलकर सुल्तानपुर हो गया . कुशभावनपुर या कुशभवनपुर तथा सुल्तानपुर नामों के बीच के समय काल में इस स्थान का नाम भर पुर ( Bharpur ) था,
कुश के शासन काल के बाद इस क्षेत्र पर भरों का अधिकार हो गया . पर राजा ( जिसका नाम अज्ञात है ) कुशभावनपुर का पुननिर्माण करवाया और इसे अपनी राजधानी घोषित कर इसका नामकरण " भर पुर " कर दिया ( Bengal AsiaticJournal , Vol45 , P.303 ) . मुसलमानों के शासन काल में भर पुर का नाम बदलकर सुल्तानपुर कर दिया गया . जो आज उ . प्र . के एक जिले के नाम से जाना जाता है . इस जिले की कादीपुर तहसील में एक परगना है
जिसका नाम “ अल्देमऊ ” है,
इस परगने का नामकरण अल्देमऊ कैसे पड़ा , ये अल्देमऊ कौन थे ? इसी विषय पर हम यहाँ अपना ध्यान केन्द्रित करेंगे . अल्देमऊ की स्थापना भर जाति के दो भाइयों ने की थी . अपने जीवन के प्रारंभिक काल में ये दोनों भाई महाराजा सोझवल की पश्चिमी राज्य सीमा के भर सरदार थे . जौनपुर के शर्की से महाराजा सोझवल 1432 ई . में पराजित हो गये . लगभग चार - पांच माह में अल्देव और मल्देव ने अपनी शक्ति को पुनः स्थापित कर लिया और स्वतन्त्र सम्राट बन गये . इसके सात वर्ष बाद जौनपुर के शासक इब्राहिम शाह शर्की का परलोकवास ( 1440 ) हो गया . अतः
अल्देव भर तथा मल्देव भर को अपना राज्य विस्तार करने का सुअवसर प्राप्त हो गया क्योंकि शर्की का पुत्र महमूद शाह दिल्ली के बहलोल लोदी से युद्ध में उलझा हुआ था . अल्देव और मल्देव युगल - भाइयों ने धीरे - धीरे अपना राज्य विस्तार करना प्रारम्भ कर दिया . अवध गजेटियर के अनुसार उनका राज्य विस्तार 349 मील में फैला हुआ था , जिसमें 562 ग्राम सामिल थे,
इन भाइयों ने गोमती नदी के किनारे पर एक किला सहित नगर बसाया जिसका नाम " अल्देमऊ " रखा गया . अवघ गजेटियर में विवरण It contains 562 villages and 223373 acres or 349 miles . It is traditionally as इस प्रकार है serted that there were two brothres , who were prominent.leaders amongst the Bhars , named Alde and Malde , the former of whom build a fort and city on the high left bank of river Gomathi , calling the latter by his own name , and adding to it the common affix of Mau . The pargana takes its name from this city which is now a huin , 1 आइने अकबरी में इसका नाम ( अल्दीमऊ ( Adimau ) दिया गया है , जिसका विस्तार अकबर के शासन काल में 46,888 बीघा 12 विश्वा था और इससे 30,99990 दाम राजस्व प्राप्त होता था . अल्देव ने जिस किले का निर्माण करवाया था वह खण्डहर के रुप में आज भी विद्यमान हैं . " क्रोनिकल्स आफ उन्नाव ' के पृष्ठ 26 पर सी . ए . इलियट ने जोर देकर कहा है कि जिन गावों , कस्बों या नगरों के नामों के अन्त में “ पुर " , " बाद ” या “ मऊ ” शब्द लगा है निश्चित रूप से उसका नामकरण भर जाति के शासकों द्वारा किया गया है . एक ऐसी अवधारणा है कि अर्दव या अल्दे के नाम के साथ मल्देव या मल्दे का नाम " मऊ " बनकर जुड़ ( Afix ) गया है इसलिए उस स्थान का नाम “ अल्देमऊ ' रखा गया . सी . ए . इलियट ने कहा है कि जितने स्थानों के बाद का नाम “ मऊ ” शब्द से जुड़ा है वे सब मल्देव की याददास्त में ही लगाये गये हैं और भरों से सबन्धित हैं . अल्देव और मल्देव ने अपना शासन प्रबन्ध चलाने के लिए अल्देमऊ को दस तप्पों में विभक्त किया था .
जिनके नाम निम्नलिखित हैं . - 1. सरवान ( Sarwan ) 2. रोहलावान ( Rahlawan ) 3. बेवना ( Bewanna ) 4. हरई ( Harai ) 5. मकरहा ( Makraha ) 6. हवीली ( Hali ) 7. जटौली ( Jatuali ) 8. करौंदा ( Karaunda ) 9. कटघर ( Katghar ) और 10. इमलक ( Imlak ) . अल्देव और मल्देव की शासन व्यवस्था के फलस्वरुप इस क्षेत्र की प्रजा धनधान्य को प्राप्त थी . अवध गजेटियर ( पृष्ठ 24 ) के एक विवरण के अनुसा र अल्देव तथा मल्देव की राजधानी में एक समय विभिन्न जातियों के आठ लोग नौकरी के लिए आये . सर्व प्रथम अयोध्या से रघुवंश रामचन्द्र का वंशज जगनग राय , जिसका अनुगामी बावन पाण्डेय था , नौकरी के लिए अल्देमा आया . वह अपने अन्य साथियों के साथ तप्पा हरई में बस गया . और वहीं सरदार के पद पर नियुक्त कर लिया गया . जगनग के बाद आगरा के समीप फतेहपुर सिकरी से , जहाँ आज भी अल्देमऊ नौकरी के लिए आये और तप्पा मकरहा में सरकारी पद पर रख लिए गये तथा वे वहीं रहने लगे , उसका अनुगमन करता हुआ वैसवारा का मानसिंह बैस आया और वह हमीदपुर वारी आनेवाले के परिवार के लोग गांव में रहते हैं , वहाँ से घोड़े का व्यापारी श्रीपाल , सकरवार दोनों में स्थापित हो गया ( हमीदपुर अब तप्पा नहीं रह गया है ) . उसने वहाँ अपना उपनिवेश कायम किया , तत्पश्चात उज्जैन से जोहपट शाह उज्जैनिया आया जिसे अल्देव ने रोहलावान तप्पे में नियुक्त कर लिया . इसके बाद केदार सुकुल आया जिसे तप्पा इमलक का व्यवस्थापक एजेन्ट नियुक्त किया गया , उसी का अनुगमन करता हुआ सरवान तिवारी अल्देमक आया जिसे राजाने सरवान तप्प में नियुक्त कर दिया . घोघर उपाध्याय इसके पश्चात आया जिसे राजा ने कटघर तप्पा में नियुक्त कर दिया . तत्पश्चात एक कुमी जाति का व्यक्ति आया . यह कहाँ से आया , यह अज्ञात पाण्डेय , है पर राजा ने असे बेवत्रा परगने का व्यवस्थापक बना दिया . सबसे अन्त में मुतकरसरवारिया आये जिसे राजा ने तप्पा हवेली का प्रबन्धक बना दिया . अवध गजेटियर में विवरण इसी प्रकार मिलता है . • Jagnag Rai , Raghubansi , a descendant of Raja Radgu , one of the ancestors of the illustraceous Ramchandar of Ajodhia came and was followed by Bawan Pandey , Kantanani and men was settled and employed in tappa Haral . Then came Siripat Rana , Sakaridar , a horse merchant from Futehpur , Sikri near Agra , where many of his clanmen still have village and jointed the Bhars and was employed and set tled in tappa Makraha . He was followed by Mansing Bais from Baiswara , who was settled in Hamidpur Warri ( Which however was not a Tappa ) and founded a colony , After this came Johpat shah , Vijana from Ujjan and he found employernent in Tappa Rohlawan . Then Kider Sukul arrieved and was appointed managing agent of Tappa Imlak and was followed by Sarwan Tiwari who was established in Tappa Sarwan . Next came Dhodhar Upaddhia , who was located in Tappa Kalghar while the Kurmis , who can not be said traditionally even to have come from elsewhere are founded managing Tappa Bewanna . Last of all came Mutkar Pande , Sarwaria and in him was vested the management of Tappa Haweli . ' ' उक्त सभी अधिकारी विभिन्न जातियों से सबन्धित थे जो महाराजा अल्देव के शासन की रीड़ की हड्डी थे,
डलमऊ के पतन के बाद जौनपुर का शासक इब्राहिम शाह शर्की मालवा तथा दिल्ली के सुल्तानों से युद्ध में उलझा हुआ था . शर्की के परलोकवास ( 1440 ई . ) के बाद उसका पुत्र महमूद शाह जौनपुर का शासक हुआ . 1457 ई . में महमूद शाह ने अपने विशेष सेनापति सैयद सुबा किरमानी को अल्देमऊ भर शासक अल्देव और मल्देव को पराजित करने के उद्देश्य से भेजा . एक विशाल सेना से भर शासक अल्देव और मल्देव बिलकुल भयभीत नहीं हुए . गोमती नदी के पश्चिमी भाग पर भयंकर युद्ध हुआ . सैयद सुजा किरमानी स्वंय को पराजित होता देख भाग खड़ा हुआ . अल्देव और मल्देव दो महीने तक चैन से रहे . इसके उपरान्त महमूद शाह एक विशाल सेना के साथ अचानक अल्देमऊ आ धमका . इस बार अल्देव और मल्देव पराजित हो गये . गजेटियर के अनुसार अवध का भर राजा गरहा ( Garha ) जब अल्देव और मल्देव के पराजित होने का वृतांत सुना तो उसका रक्त खौल गया . एक विशाल सेना के साथ अल्देमऊ की ओर रवाना हो गया . पर दिल्ली के बहलोल लोदी ने तब तक 1457 ई . में महमूद शाह को पराजित कर उसका वध कर डाला . महाराजा गरहा के इतिहास के विषय कोई जानकारी नहीं दी गयी है . गरहा ने गोमती नदी के किनारे जहां अल्देव और मल्देव का अंतिम संस्कार किया गया , नेपाल से पत्थर मगवांकर सुन्दर घाट का वहां निर्माण करवाया . इस घाट को धपाप ( Dhopap ) कहा इब्राहिम शाह शर्की ने जब वैस राजाओं को अपने साथ मिलाकर मलिक ताजुद्दीन के नेतृत्व * भरों को राय बरेली के परगने बछरावन या बछरावां से पराजित किया उस समय बछरावा को दातों में विभक्त कर दिया . एक तप्पा आसन ( Ashan ) तथा दूसरा तप्पा सिद्धौली,
भर सरदार सिद्धौल के नाम से प्रचिलित है , ये सभी क्षेत्र अल्देव तथा मल्देव की राज्य सीमा के अन्तर्गत थे . अमेठी , गौरीगंज , जगदीशपुर तथा इसौली ( वर्तमान समय सभी जिला सुल्तानपुर के अन्तर्गत आते हैं . ) सभी अल्देव तथा मल्देव के राज के अन्तर्गत थे .







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