डलमऊ के कुछ गांव में आज भी होली नहीं मनाई जाती


वर्तमान समाज की परिनिंदा सत्य का घाव मन का घाव लिए हुए हम बड़े दुख के साथ अपने डलमऊ रायबरेली के राजा डलदेव भर भारशिव क्षत्रिय तथा बलदेव भर भारशिव क्षत्रिय के भारतवर्ष की एकता अखंडता संप्रभुता तथा धर्म संस्कृति की रक्षा के लिए जो अमर बलिदान दिया ,

अमर बलिदान उसे याद करके आज द्रवी भूत होने की जगह हमारे राजवंश के उत्तराधिकारी एवं आमजन लोग हमारे अपने सगे भाई बहन रंग फाग अबीर गुलाल मांस मदिरा सुरा में जो नगन तांडव करता हैं इससे हमारे वंश के शहीद सैकड़ों राजाओं लाखों पराक्रमी सूररवीरों की शहादत को याद करने के बजाए हमें अपनी गलतियों को सुधारने के बजाय हम फिर से वही गलती कर रहे हैं

जो हमारे पूर्वजों ने दुर्भाग्यवश की थी राष्ट्र रक्षार्थ अपनी हस्ती और जवानी को मिटा देने वाले हम उन अमर वीर सपूतों करोड़ों बलिदानियों सूरमामाओ की तो लंबी फेहरिस्त है लेकिन उन्ही में से एक महान राजा डलदेव भारशिव क्षत्रिय और बलदेव भारशिव क्षत्रिय के शौर्य वीरता पराक्रम का प्रसंग आपके समक्ष प्रस्तुत करने के लिए लिखता हूं जब दिल्ली सल्तनत पर तुगलक वंश का कब्जा हो गया था


यह वंश सालार मसूद गाजी का वारिस महमूद तुगलक सन 1320 ई् से प्रारंभ होकर महमूद तुगलक सन 1412 ई तक दिल्ली का शासक रहा इन 92 वर्षों में भारत का इतिहास उथल-पुथल भरा रहा तुगलकी सुल्तानों ने हिंदू ऒ को अपने राज्य में सदैव अपंग और कमजोर बनाने का कार्य किया पर हिंदुओं ने अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त करने का प्रयास जारी रखा जिसमें भारशिव क्षत्रिय सबसे अग्रणी थे वे जब-जब अवसर पाते स्वतंत्रता और संप्रभुता का अपना झंडा फरहा देते थे वे अपनी राजनैतिक सामाजिक तथा आर्थिक दशा की टूटती कमर को देखकर तुगलकी साम्राज्य की जड़ खोदने का काम जारी रखे थे मोहम्मद तुगलक 1325 ,-50 ई,के बाद दिल्ली का सुल्तान ओके भाई रज्जब का बेटा फिरोज तुगलक 1353 ई, में बंगाल पर आक्रमण कर उसे विजित किया,


अपने राज्य में बंगाल को नहीं मिलाया वहां से लौटते समय फिरोज तुगलक जौनपुर में गोमती नदी के किनारे भारशिव क्षत्रिय राजा केरार वीर के किला पर अपना तंबू लगा दिया इस इलाके को उसने मुहम्मद तुगलक जूना शाह को सौंप दिया मुहम्मद तुगलक को बचपन में मलिक -उस शर्की से सम्मानित किया जाता था वही शर्की से शर्की साम्राज्य की की स्थापना हुई रायबरेली पर 1339 में भारशिव क्षत्रियों(भरो) ने राजसत्ता कायम की पर उस पर राजा का नाम अज्ञात है नगरकोट पर 1356 में प्रताप चंद्र का शासन था विवेक चंद्र भारशिव क्षत्रिय नामक उनका सूबेदार राही वर्तमान रायबरेली में तैनात थे

विवेक चंद भारशिव क्षत्रिय को 15 मई1360 ई की एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जिनका नाम डलदेव भारशिव क्षत्रिय रखा गया।

आगे चलकर डलदेव भारशिव क्षत्रिय जी के पांच भाई बलदेव,ककोरन,थुल हरदेव आओर भावों भावो का नाम कहीं कहीं रतलाम भी उल्लिखित है। सन 1370ई् में फिरोज तुगलक ने नगरकोट पर आक्रमण कर दिया नगर कोट में एक ज्वालामुखी मंदिर था उसमें मौजूद 1300 पुस्तको को फिरोज तुगलक ने फारसी में अनुवाद कराया और नगर कोट को छोड़ दिया।


सुवेदार विवेक चन्द्र भारशिव क्षत्रिय का पद बरकरार रहा। तथा उनके पांचों पुत्रों का पालन पोषण शिक्षा दीक्षा राही अस्त्र-शस्त्रकी (रायबरेली) में ही हुआ। पांचों भाई बहुत ही बहादुर लड़ाकू शौर्य वीरता एवं युद्ध कला में प्रवीण योद्धा बनकर निकले पिताजी ने अपने सबसे कुशाग्र बुद्धि महान योद्धा राजा डलदेव भारशिव क्षत्रिय को ने डलमऊ का राजा बनाया और डलदेव जी महाराज ने अपने प्रदेश का विस्तारीकरण प्रारंभ कर दिया राजधानी में एक भव्य किले का निर्माण कार्य प्रारंभ कर दिया गया किले का निर्माण गंगा नदी के किनारे उत्तरी किनारे पर26.3N,81.2E में मैं किया गया जो आज रायबरेली और दक्षिण-पश्चिम रायबरेली डलमऊ मार्ग पर 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है डलमऊ लखनऊ से दक्षिण पूरब की ओर 112 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है

 लखनऊ से सड़क मार्ग द्वारा बछरावां लालगंज रायबरेली मुख्यालय होते हुए डलमऊ पहुंचा जा सकता है फतेहपुर से डलमऊ की दूरी 40 किलोमीटर है डलमऊ दुर्ग 8 एकड़ भू भागक्षेत्र में फैला हुआ है किले की ऊंचाई 30 मीटर आयताकार में है किले का उत्तरी भाग 163 मीटर किले का संपूर्ण क्षेत्र को चंद्राकार परिखा से सुरक्षित किया गया था चंद्र कार परिखा बना देने दे जाने से उसका उत्तर तरफ गाड़ी खाई खोदी गई थी जिसमें गंगा नदी का पानी भरा रहता था यह पानी उत्तर पश्चिम से प्रदवेश कराकर पुणे गंगा नदी में पूरा दक्षिण क्यों निकाल दिया जाता था

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