हमारे सर्वश्रेष्ठ भारशिव क्षत्रिय राजबंश सम्राज्य के स्वाभिमानी भाइयों एवं बहनों आज होली का दिन है जोकि हमारे अतीत की समाधि है और वर्तमान समाज की परिनिंदा सत्य का घाव मन का घाव लिए हुए हम बड़े दुख के साथ अपने डलमऊ रायबरेली के परम प्रतापी परम स्वाभिमानी परम यशस्वी परम शक्तिशाली परम वैभवशाली धर्म सनातन संस्कृति के संवाहक एवं रक्षक वेद पुराण उपनिषदों धर्म शास्त्रों के मर्मज्ञ एवं सर्वज्ञ अटल अविचल स्थिर चित्त शैव संस्कृति परंपरा के एवं उत्कृष्ट जीवन शैली के शिव स्वरूप सर्वश्रेष्ठ क्षत्रिय राजा डलदेव भर क्षत्रिय तथा बलदेव भर क्षत्रिय के भारतवर्ष की एकता अखंडता संप्रभुता तथा हिंदू धर्म सनातन संस्कृति की रक्षा के लिए जो अमर बलिदान दिया उस सर्वोच्च बलिदान को याद करके हम सब आज द्रवी भूत होने की जगह हमारे राजवंश के उत्तराधिकारी एवं आमजन लोग हमारे अपने सगे भाई बहन रंग फाग अबीर गुलाल मांस मदिरा सुरा में जो 500 वर्षों से नगन तांडव करते आ रहे हैं यह एक घिनौना विभत्स तांडव हैं
जिसका विद्रूप स्वरूप इससे हमारे वंश के शहीद सैकड़ों राजाओं महराओ, रानियां महारानियो ,सति सावित्री देवियों लाखों पराक्रमी शूररवीरों की शहादत को याद करने के बजाए हमें अपनी गलतियों को सुधारने के बजाय हम फिर से वही गलती कर रहे हैं जो हमारे पूर्वजों ने दुर्भाग्यवश होली के दिन सन 1402 में आज ही के दिन की थी राष्ट्र रक्षार्थ अपनी हस्ती और जवानी को मिटा देने वाले हम उन अमर वीर सपूतों करोड़ों वीर बलिदानियों सूरमामाओ की तो लंबी फेहरिस्त है लेकिन उन्ही में से एक महान राजा डलदेव भारशिव क्षत्रिय और बलदेव भारशिव क्षत्रिय के शौर्य वीरता पराक्रम का प्रसंग आपके समक्ष प्रस्तुत करने के लिए लिखता हूं ,जब दिल्ली सल्तनत पर तुगलक वंश का कब्जा हो गया था यह वंश सालार मसूद गाजी का वारिस महमूद तुगलक सन 1320 ई् से प्रारंभ होकर महमूद तुगलक सन 1412 ई तक दिल्ली का शासक रहा इन 92 वर्षों में भारत का इतिहास उथल-पुथल भरा रहा तुगलकी सुल्तानों ने हिंदू ऒ को अपने राज्य में सदैव अपंग और कमजोर बनाने का कार्य किया पर हिंदुओं ने अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त करने का प्रयास जारी रखा जिसमें भारशिव क्षत्रिय/राजपूत सबसे अग्रणी थे! वे जब-जब अवसर पाते स्वतंत्रता और संप्रभुता का अपना झंडा फरहा देते थे!
वे अपनी राजनैतिक सामाजिक तथा आर्थिक दशा की टूटती कमर को देखकर तुगलकी साम्राज्य की जड़ खोदने का काम जारी रखे थे मुहम्मद तुगलक 1325 ,-50 ई,के बाद दिल्ली का सुल्तान के भाई रज्जब का बेटा फिरोज तुगलक 1353 ई, में बंगाल पर आक्रमण कर उसे विजित किया अपने राज्य में बंगाल को नहीं मिलाया! वहां से लौटते समय फिरोज तुगलक जौनपुर में गोमती नदी के किनारे भारशिव क्षत्रिय राजा केरार वीर के किला पर अपना तंबू लगा दिया! इस इलाके को उसने मुहम्मद तुगलक जूना शाह को सौंप दिया! मुहम्मद तुगलक को बचपन में मलिक -उस शर्की से सम्मानित किया जाता था वही शर्की से शर्की साम्राज्य की की स्थापना हुई !रायबरेली पर 1339 में भारशिव क्षत्रियों(भृरो) ने राजसत्ता कायम की पर उस पर राजा का नाम अज्ञात है नगरकोट पर 1356 में प्रताप चंद्र राय का शासन था! विवेक चंद्र भारशिव क्षत्रिय नामक उनका सूबेदार राही वर्तमान रायबरेली में तैनात थे विवेक चंद भारशिव क्षत्रिय को 15 मई1360 ई की एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जिनका नाम डलदेव भारशिव क्षत्रिय रखा गया। आगे चलकर डलदेव भारशिव क्षत्रिय जी के पांच भाई बलदेव,ककोरन,थुल हरदेव ओर भावों ,भावो का नाम कहीं कहीं रतलाम भी उल्लिखित है। सन 1370 ई. में फिरोज तुगलक ने नगरकोट पर आक्रमण कर दिया नगर कोट में एक ज्वालामुखी मंदिर था उसमें मौजूद 1300 पुस्तको को फिरोज तुगलक ने फारसी में अनुवाद कराया और नगर कोट को छोड़ दिया।सुवेदार विवेक चन्द्र भारशिव क्षत्रिय का पद बरकरार रहा। तथा उनके पांचों पुत्रों का पालन पोषण शिक्षा दीक्षा राही अस्त्र-शस्त्रकी (रायबरेली) में ही हुआ। पांचों भाई बहुत ही बहादुर लड़ाकू शौर्य वीरता एवं युद्ध कला में प्रवीण योद्धा बनकर निकले पिताजी ने अपने सबसे कुशाग्र बुद्धि महान योद्धा राजा डलदेव भारशिव क्षत्रिय को ने डलमऊ का राजा बनाया डलदेव महाराज की पत्नी का नाम देवी बासुमति मझली रानी लक्ष्मी गांडीव प्रदेश के राजा इंद्र सेन की कन्या अमिता,, संग्रामपुर ( डौडिया खेड़ा)के रेवंत राय की पुत्री कंचुकी राजा डलदेव महाराज जी की छोटी रानी,, मालती रानी वसुमति की परिचारिका शकुंतला रानी लक्ष्मी के परिचारिका, श्यामा रेवंत के दोस्त केवल सरदार की पुत्री जिसके पिता कुंती पुर के युद्ध में मारे गए नंदू डलमऊ किले का द्वारपाल गजराज राजा डल देव जीका सेनापति , मलखान रायबरेली के किले की सुरंग का पहरेदार इब्राहिम सासर की जौनपुर का शासक बाबार सैयद सरकी के अधीन कड़े मानिकपुर का सूबेदार सलमा बाबर की पुत्री सलीम सलमा का होने वाला पति शातिर शर्की की सेना का सरदार और सलमा का आशिक डलदेव जी महाराज ने अपने प्रदेश का विस्तारीकरण प्रारंभ कर दिया राजधानी में एक भव्य किले का निर्माण कार्य प्रारंभ कर दिया गया किले का निर्माण गंगा नदी के किनारे उत्तरी किनारे पर26.3N,81.2E में मैं किया गया जो आज रायबरेली और दक्षिण-पश्चिम रायबरेली डलमऊ मार्ग पर 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है डलमऊ लखनऊ से दक्षिण पूरब की ओर 112 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है लखनऊ से सड़क मार्ग द्वारा बछरावां लालगंज रायबरेली मुख्यालय होते हुए डलमऊ पहुंचा जा सकता है फतेहपुर से डलमऊ की दूरी 40 किलोमीटर है डलमऊ दुर्ग 8 एकड़ भू भागक्षेत्र में फैला हुआ है किले की ऊंचाई 30 मीटर आयताकार में है किले का उत्तरी भाग 163 मीटर किले का संपूर्ण क्षेत्र को चंद्राकार परिखा से सुरक्षित किया गया था चंद्र कार परिखा बना देने दे जाने से उसका उत्तर तरफ गाड़ी खाई खोदी गई थी जिसमें गंगा नदी का पानी भरा रहता था यह पानी उत्तर पश्चिम से प्रदवेश कराकर पुणे गंगा नदी में पूरा दक्षिण को निकाल दिया जाता था किला चारों ओर से पानी से घिरा होने के कारण इसे जल दुर्ग का अपना विशेष महत्व होता है इस किले के चारों ओर पानी भरा रहता था समय मगर छोड़ दिए जाते थे डलमऊ के दुर्ग को भी पश्चिम उत्तर और पूरब से जो पानी से भरा रहता था अच्छे किस्म के तगड़े घड़ियालों का वास करा दिया गया था किला अस्त्र-शस्त्र धना धन वाहन शिल्पी और तृण आदि से परिपूर्ण था किले में एक बावड़ी तथा तीन कुएं थे। जलभराव के पश्चात किले को अर्धचंद्राकार ऊंची मजबूत दीवार बनाकर सुरक्षित किया गया था किले में राज दरबारियों का आवास तथा सैनिक छावनी भी थी किले का दक्षिणी भाग मोर्चा बनाया गया था यह भाग गंगा नदी के तट पर बना हुआ था यही राज प्रसाद था जहां महाराजा डलदेव भारशिव क्षत्रिय जी निवास करते थे इस राज प्रसाद में दक्षिण की ओर अनेक खिरकिया लगी थी इस राजभवन के ऊपर एक ऊंची मीनार बनाई गई थी जिस पर संध्या से लेकर रात्रि भाई चिराग जलती रहती थी उस राज्य की संपन्नता का प्रतीक थे इस चिराग को भर कुल दीपक कहा जाता था किले कांतिपुर रनिनिवास पश्चिम की ओर बनाया गया था जो विशेष रूप से सजा हुआ रहता था या भाग राज प्रसाद से सटा हुआ था राज प्रसाद के मुख्य द्वार के सामने एक शिव मंदिर निर्मित किया गया था इस मंदिर में विशाल शिव प्रतिमा तथा शिवलिंग स्थापित थी जिनकी समय अनुसार पूजा अर्चना की जाती थी किले का राज दरबार विशाल था आईने अकबरी के अनुसार डलमऊ क्षेत्रफल 6,7508 बीघा 9 बिस्वा बताया गया है।The Aimikbari voll ll p176 by Abufazal Translatied by Colonal HS Jarret के अनुसार या किला पुरातात्विक महत्व का है गंगा नदी तट पर बनाया महाभारत कालीन गृह होने का भी प्रमाण मिलता है यह केले का एक भाग गंगा का बहाव होने के कारण कट गया जिसमें ग्रह की संरचना होने का कुछ भाग दिखाई देता है इस किले का ऐतिहासिक महत्व मौर्य काल मध्यकाल राजपूत काल मुगल काल तथा ब्रिटिश काल में भी रहा है रायबरेली जनपद शहर से सट्टा एक गांव है जिनका नाम अहियापुर है इस गांव का नामकरण आईना के नाम से पड़ा है कहा जाता है कि प्राचीन काल में इसी स्थान पर नाग उत्सव बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता था यहां एक गुडिया मेला भी लगता था जनश्रुति के अनुसार जनपद में अहीरों की भाव टीका के रूप में भर आज भी बड़ी संख्या में है डलमऊ किले की खुदाई करने पर चंद्रगुप्त प्रथम तथा समुद्र गुप्तकालीन स्वर्ण मुद्राएं प्राप्त हुई हर्षवर्धन के समय काल में जगतपुर में हुयेन सांग आया थाना फसलों और फलों से भरा है 1339 में यह क्षेत्र भरो के आधिपत्य से पूर्ण रूप से आया राजा डलदेव भारशिव क्षत्रिय ने बलदेव भारशिव क्षत्रिय का किला रायबरेली में 26.14N ,81017E सईं नदी के सुरम्य उत्तरी तट पर बनवाय । अपने तीसरे भाई राजा का कुरान भारशिव क्षत्रिय के लिए रायबरेली से दक्षिण पूर्व 25.59N,81.13E जगतपुर में लगभग 12: किलोमीटर दक्षिण पश्चिम तहसील डलमऊ के अंतर्गत खुदा मानपुर में किले का निर्माण करवाएं। तीसरे भाई राजा भवो भारशिव क्षत्रिय के लिए जनपद रायबरेली से पूरब लगभग 20 किलोमीटर जगतपुर से 8 किलोमीटर की दूरी पर इलाहाबाद मार्ग में भावो नामक स्थान पर के किले का निर्माण कराया यह किला 200 मीटर लंबा तथा 200 मीटर चौड़ा था चौथे भाई राजा थुल भारशिव क्षत्रियके के लिए रायबरेली से उत्तर पश्चिम 18 मिल 26.27N81.10E में महाराजगंज तहसील के अंतर्गत निर्माण करवाया पांंचवेभाई राजा हरदेव भारशिव क्षत्रिय के लिए रायबरेली से उत्तर 26.24N 81.12E महाराजगंज से बछरावां मार्ग पर निर्माण करवाया जब अपने पांचों भाइयों को लेकर महाराजा डलदेव भारशिव क्षत्रिय जी ने अपने अदम्य साहस शौर्य वीरता पराक्रम न्याय वादिता धर्म परायणता, सहिष्णुता केबल पर सुशासन का डंका देश दुनिया में बजाया तो यह बात इब्राहिम शाह सरकी को अच्छी नहीं लगी और उनकी लोकप्रियता को वह बर्दाश्त नहीं कर पाया तथाआ सन1402 आज ही होली के दिन डलमऊ राज्य पर आक्रमण कर दिया जिसमें डांडिया खेड़ा निवासी अभय चंद नाम के बैस राजपूत ने मुख बिरी कर इब्राहिम शासन की को डलमऊ राज्य के किलो का सभी भेद बता दिया था कुछ नहीं अभी बताया की होली के दिन भारशिव क्षत्रिय(भर वंश) के लोग तलवार नहीं उठाते हैं और वे शिव तथा शक्ति की पूजा करते हैं वह भांग और धतूरा छानकर खूब होली मनाते हैं इसी कमजोरी का लाभ उठाकर होली के दिन ही क्रूर इस्लामिक आक्रांता इब्राहिम शाह शर्की ने इतना भीषण आक्रमण किया और छल कपट की नीति अपनाते हुए अधर्म युद्ध किया कहां रीनू द्वारा भांग के पंडाल में गजनी का सिंही जहर भांग के कंडालों में डलवा दिया और जब सैनिक भांग पीकर नशे में हो ग कहां रीनू आधे तो मर गए और आधे बच गए तब दशा देख राजा डलदेव भारशिव क्षत्रिय जी को भारी चिंता हुई राजा डलदेव तथा बलदेव बड़ी ही बहादुरी से शर्की के मुगल सेना का मुकाबला किए लेकिन जब शर्की ने देखा धर्म संस्कृति संवाहक धर्म युद्ध धर्म युद्ध से हम लड़ाई कदापि नहीं जीत नहीं पाएंगे तब उसने अदम छद्दम युद्ध का सहारा लिया जो अक्सर विदेशी आक्रमणकारियों आज तक वही किया हैं ।अमर बहादुर सिंह अमरेश जी की एक ऐतिहासिक पुस्तक राज कलश में वर्णित प्रसंग यह है कि जब इब्राहिम शाह शर्की के कडे मानिकपुर के सूबेदार बाबर सैयद की एक खूबसूरत पुत्री सलमा जब अपनी सहेलियों के साथ गंगा नदी में नौका विहार करते हुए डलमऊ राज्य के किले को देखने पहुंची तो प्रतिबंधित क्षेत्र में उसे सैनिकों ने बंदी बनाकर राजा डल देव भार शिव क्षत्रिय जी के समक्ष प्रस्तुत किया गया तब उन्होंने सलमा के बारे में पूरी कहानी जानना चाहा और सलमा ने अपना पूरा जीवन वृतांत बताते हुए अपने पिता तथा इब्राहिम शाह शर्की साम्राज्य के संबंधित जानकारी से उन्हें अवगत कराया था तथा दोनों में प्रेम के बीज अंकुरित हो गए और अक्सर वे दोनों मिला करते थे लेकिन यह बात जब बाबा सैयद को पता चला कि हमारी पुत्री एक हिंदू शासक राजा डाल देव अटूट प्रेम करती है और उन पर आसक्त है तो उन्होंने यह बात इब्राहिम शाह शर्की से कहां दोनों ने इसको इस्लाम धर्म के विपरीत मानते हुए प्रतिशोध की आग में जलने लगे और राजा डलदेव महाराज जी के खिलाफ गुप्त जानकारी इकट्ठा करने के लिएअपने गुप्तचर भेज दिए जुबेदा नाम के गुप्त चर भेद बताते हुए कहा सबब है कि होली इन लोगों का खास त्यौहार है उस मौके पर ये लोग कई दिन पहले से ही रंग में डूबे रहते हैं मैंने सुना है डलमऊ में होली का जश्न जीशान से मनाया जाता है वैसा और कहीं नहीं नगाड़े बजते हैं फाग होते हैं और रात दिन रंग गुलाल और अबीर चलता रहता है सबसे खास बात यह है उस दिन यह लोग इकट्ठे होकर इतना पीते हैं कि होज के हौज खाली हो जाते हैं किसी को होश ही नहीं रहता सभी नशे में चकनाचूर मस्त बेहोश और गाफिल रहते हैं औरत मर्द सबके लिए पीने की खुली छूट रहती है शराब पीकर ये लोग कतरत से रंग खेलते हैं की गंगा का पानी लाल हो जाते हैं। 3 दिन तक शराब की बेहोशी छाई रहती है दौर चलते ़ हैं और यह इंकार नहीं करते यह त्यौहार राजा रियाया सिपाही नौकर चाकर सभी बड़ी मस्ती और बेपर्दी से मनाते हैं कि किसी को अपना ख्याल ही नहीं रहता यही नहीं पता लगता है कि कौन राजा है कौन प्रजा बाहर भीतर चारों तरफ महज शराब और रंग ही दिखाई पड़ता है कहां अभी होली महीनों दूर है मगर लोगों में मस्ती छाने लगी हैं वसंत ऋतु के बाद से ही उनके जश्न शुरू हो जाएंगे होली तक पहुंचते पहुंचते सभी भारशिव क्षत्रिय लोग अपनी मस्ती की चरम सीमा का स्पर्श कर रहे होंगे। तैयारियां अभी से हो रही है। इस बात पर बाबर सैयद सूबेदार ने कहा यह बड़ी अच्छी बात बताई इसे शानदार मौका फिर न मिलेगा अब होली कितने दिन रह ही गए हैं अल्लाह चाहेगा इस बार उन्हें होली के बाद नया नाज खाने को ना मिलेगा़ यह बात सलमा चुप कर सुन रहे थे और उसका दिल दिल जोर-जोर से धड़कने लगा और मन उदास हो गया उसके बाद बाबा सैयद नं अपने नौकरसे सूबेदार समसुदीन और सिपहसालार जाहिद अली को भी बुलावा लिया उसके बाद इब्राहिम शाह शर्की भी बाबर सैयद के कड़े मानिकपुर स्थित राजमहल मैं अर्धरात्रि को प्रवेश किया सबने उसका बहुत हीभव्य तरीके से स्वागत किया और वैसे भी अपने निश्चित आसन पर बैठ गए उन सभी का एक ही मकसद था राजा डलदेव की हत्या कर डलमऊ का विनाश करना डलमऊ के लिए का नक्शा सबके सामने रखा गया और आक्रमण की योजना बनाई गई आक्रमण का पथ निर्धारित किया गया तुर्क सेना को टुकड़ियों में बांटा गया गोल दाजो को तोपों को ठीक करने के का आदेश दिया गया दूसरी तरफ राजा बलदेव के प्रेम भावविभोर सलमा उनका अन्तिम पत्र पढ़ रही थी दीपक के प्रकाश में सलमा पत्र की एकाएक पंक्ति को अपनी भावना का केंद्र बनाए थी पत्र में लिखा था मेरी राज हंसिनी तुम्हारा पत्र मिला चमन और निकुंज बुलबुल और कोयल सलमा और डल सभी एक दूसरे के पर्यायवाची हैं एक ही है नामों की भिन्नता गुणों में भिन्नता यदि भिन्नता समझती हो तो एक दूसरे को पूरक समझ लो अल्लाह और ईश्वर एक ही है दोनों के नाम भन्न हुए तो क्या चित्रकार बुलबुल और कोयल चमन और निकुंज दोनों ही एक दूसरे के दृष्टिकोण से भिन्न होते हुए भी एक ही महत्त्व रखते हैं जैसे तुम और मैं जब तुम में और मुझ में कोई अंतर ना रहा तो चमन को चाहे निकुंज कर लो या निकुंज को चमन कोई अंतर न पड़ेगा तुमने ठीक ही लिखा है कि मुझे दर्द की पहचान नहीं किंतु हमदर्द की पहचान अवश्य है इसलिए मैं सैय्याद होते हुए भी इंसान हूं क्योंकि मैंने एक ऐसी हदन हींन प्रतिमा के ऊपर आशाओ के पुष्प चढ़ाकर आरती उतारी है जिससे वरदान मिलने की आशा नहीं प्रत्युत मेरे लिए वरदान है मेरी पूजा को भले ही देवता खिलवाड़ समझे और मुझे जाने में बतावें मगर मैं उस खिलवाड़ में भी अपनी छाया देखता हूं बोलो मैं असत्य तो नहीं कह रहा। सलमा आंखों में आंसू भर कर कहां तुम असत्य नहीं कर रहे हो तुम्हें क्या पता जिन पन्नों के बल पर तुम हवाई महल उठा रहे हो उनकी न्यू ही गलत है किंतु इस गलत बुनियाद पर भी तुम्हारा इतना विश्वास है सोचते सोचते सलमा का ह्रदय हाहाकार कर उठा उसने आगे पत्र पढ़ा तुम मौसम का इंतजार कर रही हो मगर यह बोलती हो कि मौसम तो आपने आप आया जाया करता है उसे कोई बुलाने नहीं जाता उसी के साथ कोयल भी आती है यह दोनों अनाहुत अतिथि हैं जो स्वयं निकुंज में आकर चहकने लगते हैं तुम तो मौसम के पहले ही मेरे हृदय कुंज में आ चुकी हो लेकिन एक हुक बनकर यह हृदय का हुक कभी कोयल की कूक भी बनेगी अथवा नहीं जब यह सोचने लगता हूं तब तुम्हारा तम तम आता हुआ चेहरा आंखों में नाच उठता है यदि तुम्हारा पत्र सत्य है इसके भाव सत्य है तो मुझे विश्वास है तुम धोखा ना दोगी एक बहादुर कौम की बहादुर बेटी से इसके अतिरिक्त और क्या आशा करु। बहादुर कौम की बहादुर बेटी सलमा बुद- बुदाई उसकी आंखों में से दो मोती पत्र पर चू पड़े जिस पत्र पर लिखा था तुम्हारा अपना डलदेव सलमा ने आंचल से अपने आंसू को पोंछते हुए कहा मैं तुम्हें धोखा नहीं दूंगी एक लंबी साथ छोड़ कर उसने संकल्प किया एक बहादुर कौम की बहादुर बेटी तुम्हें धोखा नहीं देगी मगर बहादुर कॉम ही तुम्हें धोखा में डाल चुकी है। जिस लड़की पर तुम इतना विश्वास करते हो वही उस भ्रम जाल का फंदा है बहादुर को बहादुरी से मारा जाता है धोखे से नहीं मगर यह लोग उफ;..... सलमान शेयर उठी कितने नीचता उतर आए हैं यह लोग मैं जानती की एक राजा को पराजित करने के लिए दूसरा राजा इतना संकीर्ण हृदय हो सकता है उसे इतने धोखे में रख सकता है तो मैंअपने विदाई की बात किसी को भी ना बताती चाय डलमऊ के किले में मैं अकेली जाकर जूझ जाती इतिहास मुझे याद करता कि एक काफिर लड़की अपने इज्जत का बदला लेने के लिए एक बहादुर लड़की अकेले ही लड़ मरी थी।मगर आज संसार यही कहेगा कि एक पवित्र हृदय एवं निष्कपट व्यक्ति को धोखे में डाल कर उसका समस्त वैभव रौंद डाला गया मटियामेट कर दिया गया ओर वह लड़की जिसके बदौलत यह सब हूं किले में बैठी बैठी गंगा की तरंगों का आनंद लें थी रही मै चार दिन बाद दुनिया को मुंह दिखाने लायक नहीं रहूंगी। सोचते सोचते सलमा का नारी हृदय चित्कार कर उठा। सब कुछ देख कर सलमा की सांस फूलने लगी वह छाती से उठ रहे तूफान कुछ आती नहीं समय कर सब देखती रही बल गाड़ियों में रसद ला दी जा चुकी थी सेनापति घोड़े पर चढ़ा हाथ में नंगी तलवार लिए टहल रहा था सब कुछ तैयार था केवल इब्राहिम शाह शर्की के आने में देर थी बस घड़ी भर वैसे ना कुछ कर देगी एक और यह सब तैयारियां ये हाथी ये घोड़े ये तोंपे के सिपाही और दूसरी और मेरी मोहब्बत में पागल राजा डल शर्मा के नए भर आए वह बिसूरते लगीशायद उस बेचारे को पता भी ना होगा कि आई एम होली के दिन यह लोग उसे मटिया मट करने आ रहे हैं सलमा खिड़की से देख रही आशु पूछ रही उधर सेना सजती रहे बिगुल बजते रहे घोड़े ही नहीं आते रहे हाथी पिह कारते रहे और जनरव के बीच सेनापति की ललकार गूंजती रही सलमा का हृदय भर आया कुंच का डंका बजा गोला छूटा अल्लाह होअकबर का घोष हुआ और सेना दिल टिड्डी दल की तरह बढ़ चली या खुदा सलमानी आंखों में आंसू भरकर आकाश की ओर देखकर कहा परवरदिगार मेरी लाज रखना एक ओर मेरी मोहब्बत है दूसरी ओर मेरी बेज्जती फिर भी सब कुछ मेरे ही नाम पर होने जा रहा है मालिक लाज तेरे हाथों में है इधर आज के ढोल बज रहे थे होली गाई जा रही थी करण के हौज के हौज भरे जा चुके थे बाहर नगाड़े धमधमा रहे थे संपूर्ण खिला रंग बिरंगी पोशाकों से रंगके फौब्बारो से एक नए उल्लास में डूबा हुआ था नंगी तलवारों के स्थान पर हाथ में पिचकारियां थी रानियां जर्क फर्क पोशाके पाने मस्ती से किलोले कर रही थी परिचारिका है जड़ाऊ कमर पेटी में खंजर खोंसे हुए चंचलता थे इधर उधर थिरक रही थी किलकारियां भर रही थी उपहास कर रही थी और एक दूसरे के मुख पर अबीर लगा रहे थी सोने की अम्बारिया सुनहरी धूप में चमचमा रही थी झरोखे में लगे वहीं रेशमी पर्दे वायु में लहरा रहे थे किले का संपूर्ण आंगन इत्र गुलाल रंग केसर एवं अबीर से सराबोर था मुक्त कुंतला रानियां रंग बिरंगी हो रही थी फिर भी किसी के गाल गुलाल से अरुण हो गए थे किसी का मुंह केसर के किच से विकृत हो गया था तो किसी की चोली रंग से गिली पड़ गई थी किसी की साड़ी रंग से सराबोर थी तो किसी क्या चल से मुक्त पूछ रही थी तो कोई किसी के कपोलों को लाल पीला बना रही थी इसी धमाचौकड़ी के अटहासमें धरपकड़ में किसी को पता नहीं था कि हमारे राज्य पर आक्रमण होने वाला है उधर पुरुष लोग सब रंग में डूबे नशा कर रहे थे संपूर्ण दिन रंग अबीर और गुलाल चलता रहा सभी बेहोश मदमस्त एवं पागलों से एक दूसरे से मिलते रहे लिपटते रहे रंग सराबोर करते रहे स्वादिष्ट पकवान भोजनालय में ही पड़े रहे किसी को खाने की फुर्सत थी और ना ध्यान था सांझ हुई दुर्ग मशाले जल उठी क्या से संपूर्णकिला जगमगा उठा विशाल प्रांगण में सब लोग टोलियां बना बनाकर बैठ गए ढोल मृदंग झांझ करताल बजने लगे फाग होने लगा मदिरा का हौज भरा गया करताल बजने लगे और फाग होने लगा भांग औरमंदिरा का हज भरा गया एक डोली जब सभा समाप्त करती तो उसी लेज को दूसरी उठाती और फिर टोली भांग और मदिरा पान में जुट जाती हौज के हौज खाली हो रहे हजारों मटके सुरैया और नादे भरती और खाली होती तथा फूटती रही सभी डेट कर पी रहे पीरहे थे ! पुरुषों में केवल महाराज एवं महामंत्री तथा नारियों में सावित्री ओम कंचुकी रानी को छोड़कर सभी नशे में चकनाचूर यहां तक की सेनापति भी।एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत शर्की के गुप्तचर भांग धोलने वाले पात्र में तुर्की से मंगाया गया सिसी जहर मिलवा चुके थे कहां जाता है हजार इतना खतरनाक होता था कि ही अगर हाथी को एक बूंद पिला दिया जाए तो हाथी तुरंत ही तड़प तड़प कर दम तोड़ देता था राजा डलदेव महराज जी को जब इस बात की आहट हुई तब बहुत देर हो चुकी थी यह सब राग रंग चलते चलते रात का पिछला प्रहर आ गया कोई टस से मस न हुआ वही मस्ती वही संगीत वही मदिरा का दौर सब के सब चेतना हीन हो रहे थे रतन का ध्यान न कंठ का न स्वर का न ताल का ना बाजे का नआलाप का बाजा कहीं जा रहा था तो स्वर कहीं केवल हो हो ही ही सुनाई पड़ रही थी मस्ती में कोई झूम रहा था तो कोई गिर रहा था तो कोई गिरने वाला था तो कोई चारों खाने चित पड़ा था उसी समय एक गोला किले के आंगन में गिरा सब रंग में भंग हो गया महामंत्रीचिल्लाएं महाराज यवानों की सेना आ गई सेनापति हजारों सैनिकों एवं ग्राम वासियों के साथ अभी भी गाना गा रहे थे यह गोला शर्की की की सेना ने चेतावनी स्वरूप फेंका था गोला गिरते ही भीषण गर्जना हुई गोले की गर्जना सुनकर महाराज भितरी कक्ष से बाहर की ओर निकल आए सेनापति अभी भी झूम झूम कर गा रहे थे मानो कुछ हुआ ही नहीं जो ढोल मृदंग कर काल एवं जनरथ में डूब गई महाराज के होश उड़ गए सेनापति सेना सरदार सभी बेहोश पड़े थे उन्होंने बढ़कर किले का द्वार बंद करवा लिया महामंत्री को गोला बारूद निकलवाने का आदेश दिया प्रसिद्ध भैरो तो प दुर्ग फाटक पर लगवा दी नंदू को बुलाया हुआ कुछ होश में था उसे रंग से बाहर निकाल कर रातो रात रायबरेली सूचना लेकर भेज दिया महाराज स्वयं अस्त्र-शस्त्र सुरक्षित होकर घूमने लगे ररनिवास में हड़कंप मच गया कंचुकी एवं सावित्री को छोड़कर सभी रानियां एवं परिचारिकाएं बेहोश थी अजीब दृश्य था बाहर के लिए पर गोले बरस रहे थे और अंदर मंदिरा के दौर चल रहे थे फाग हो रहा था और ढोलक बज रही थी महाराज खड़े दांत पिस रहे थे उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें सासर की ने किले को किले के दो ओर पूरी मोर्चाबंदी कर ली थी पूर्व की ओर उसने तोपे लगा रखी थी और उत्तर की आओर शातिर और बाबर सैयद सेना समय लेकर डटा था शेष दो और कोई मैदान में न था दोनों ओर खाई थी मोर्चाबंदी इस प्रकार की गई थी कि कोई भी जीवित ना बचे जो प्राण बचाकर भागे भी तो वह गंगा में डूब मरे या खाई में रात भर शर्की की तोपे आग बरसती रही घोसले से पक्षी जाग उठे वृक्ष लगाएं सभी जैसे चौक पड़े हो गोला फेंकते फेंकते तोपों का मुख लाल पड़ गया लेकिन किले की दीवारों पर कोई प्रभाव ना हुआ जो गोला जहां लगता था वही धंस जाता था शर्की यह स्थिति देखकर परेशान हो उठा सैकड़ों मन बारूद नष्ट हो गए मगर किले पर कोई प्रभाव न पड़ा प्रभात होने में भी अधिक देर न था सबसे विचित्र बात तो यह थी कि इतनी भीषण गोलाबारी होने पर भी ना किला कही से टूटा और ना ही महाराज डाल देव जी के सैनिक हीं दिखाई पड़े।तोपें फेल हो गई शाह शर्की जिन्दाबाद के नारे गगन को प्रकंपित कर रहे थे भीतर महाराज बौखलाए से घूम रहे थे उनको डांट डपट का सरदारों पर कोई प्रभाव नहीं हो रहा था वे अब भी। मदिरा का दौर चला रहे थे महाराज को हराकर क्रोध आ रहा था उनकी ऐसी इच्छा हुई कि वह भैरो तोप का मुंह सरदारों की ओर मोड़कर कर उन सबको उड़वा दें और स्वयं अकेले ही जूझ मरे। महारानी सावित्री और रानी कंचुकी नहीं अपने अपने हाथ में तलवार लेकर अंता;पुर के दोनों प्रवेश द्वारों पर खड़ी हो गई महारानी सावित्री ने अपने बच्चे को सुरंग में बैठा दिया प्रभात हो रहा था शाह शर्की परेशान था उसने छिपा सलाह से किले का नक्शा मांगा और उसे ध्यान से देखा फिर प्रसन्न होकर कहा सभी तोपों को बीचो बीच में खिंचवा लाओ तोपों को बीचो-बीच खड़ा कर गोलाबारी करने लगे गोले की मार से किला धंस और सुरंग का मुंह खुल गया गोलाबारी बंद करवा शाह शर्की ने सुरंग में बारूद भरने का आदेश दिया जब बारूद भरने का कार्य पूरा हो गया सुरंग के मुंह पर थोड़ी सी जगह बाकी रह गई तब सेना को अलग हटने का आदेश दिया राज द्वार पर रखी हुई तोप अब गोले बरसाने लगी इधर यह सब हो रहा था उधर नंदूर रातों-रात रायबरेली पहुंचा वह भी वही दशा थी खबर पाते ही सेना तैयार हुई बैल गाड़ियों में सामान लाद आ गया तोपे निकाली गयी और सेना चल पड़ी किले में हाहाकार मचा हुआ था सभी सेनाध्यक्ष अपनी अपनी सेना को सतर्क कर रहे थे प्रधान सेनापति घोड़े पर चढ़े शीघ्रता करवा रहे थे अंत में प्रयाण को बेला आ ही गई महाराष्ट्र यार भाई रानी सुभद्रा ने उनके फेटे में तलवार बांधी महाराज बलदेव जी ने एक बार प्यासे नैनों से दुर्ग कुनिहार शिव की प्रतिमा को सिर झुकाते हुए चल पड़े गजराज घोड़े पर बैठने के पूर्व श्यामा के पास गया और बोला विदा दो रण क्षेत्र में जा रहा हूं श्यामा के नेत्र छल छल उठे हो गजराज के सैनिक वेश को निहारती रही और धीरे से बोली जाओ गजराज और वह बिलख पड़ी कहा मरने से पूर्व मेरे पिताजी में रा और तुम्हारा मंगल परिणय करके एक सूत्र में बांधना चाहते थे किंतु उन्हें विश्वासघाती मलखान ने मार डाला वे अपनी इच्छा से समेटे हुए चले गए मैं अभागन शेष रह गई आंसू पहुंचकर श्यामा ने एक बिरंगाना की भांति माथे पर तिलक लगाकर सेनापति गजराज को कुछ करने कूच का गोला दागा और सेना चल पड़ी शाह इब्राहिम शर्की के पीछे पीछे उसका लड़का मोहम्मद शाह एक सेना लिए शाह के सहयोग के लिए डलमऊ की ओर बढ़ा जा रहा था उसके साथ उसका छोटा भाई हुसैन शाह भी था। जब अपनी सेना समेत का को रंगराओ के निकट पहुंचा तो महाराज डलदेव के छोटे भाई का काकोनर ने कह उसे घेर लिया सुदामन पुर गांव के निकट दोनों में भीषण संग्राम हुआ ककोनर की सेना शाह के समक्ष ठहरन सकी और काकोर सेना सहित वीरगति को प्राप्त हो गए शाह की सेना पुन; डलमऊ और चल पड़ीइधर किले की सुरंग में बारूद भर चुकाने के बाद शाह शर्की ने अपनी सेनाओं को दूर हटा दिया और बाहर से उतरी सुरंग पर गोलाबारी करने लगा बारूद मेंआग लगी संपूर्ण किला कंपायमान हो गया एक भीषण धड़ाके के साथ समस्त किला कसमसा कर बैठ गया मदिरा की नादे खड़े सुराहियो की धज्जियां उड़ उड़ कर आकाश में छा गई सहश्रो व्यक्ति उसी में दब कर रह गये सिकासेर ऊपर उछाला तो किसी का धड़ तो किसी का हाथ तो किसी का पैर पेड़ों की पत्तियां झुलस गई तड़फड़ा कर रह गए या अली शाह की सेना ने निनाद किया शाह के आदेश पर यवन सेना किले में भीषण गोलाबारी करती रही दिवारी गोलो की धमक से फट फट कर गिरती रही महाराज डलदेव जी अपने घोड़े समेत पश्चिम की खाई पार करके उपर चढ़े वह पहले ही उस पार निकल गए थे सेना सेनापति पुरजन नौकर चाकर सभी दबकर मर गए जो जीवित बचे प्राण बचा कर इधर-उधर भागने लगे कंचुकी और सावित्री अन्य रानियों समेत अंत: पुर की सुरंग में पहुंच गई।हर-हर महादेव की गर्जना हुई महाराज डल देव की जय का स्वर गूंज उठा शाह शर्की की सेना चौंक पड़ी उसने पीछे की ओर मुड़ कर देखा तो सहश्रो अश्वारोही बढे चले आ रहे थे शाह की सेना किले में घुसने की वजह एक बार गिर लौट पड़ी शाह ने सबको सतर्क किया तोपों का मुंह घुमा दिया गया बात की बात में छोटे राजा की सेना शाह शर्की की फौज से भिड़ गई छोटे राजा ने शाह को ललकारा शाह शर्की आगे बढ़ा पीछे से महाराज प्राण हथेली पर रखकर शाह की ओर फपटे उसी समय शातिर ने छोटे राजा पर वार किया महाराज ने शातिर को भाले का निशाना बनाया वह घायल होकर गिर पड़ा उसका घोड़ा एक ओर भाग निकला मृतप्राय शातिर को बाबर सैयद ने उठा लिया थोड़ी देर में ही रणचंडी का प्रलय नर्तन होने लगा घुड़सवार घुड़सवारों से भिड़ गए पैदल-पैदल के साथ जूझे जो जिसे पाता हलाल करके रख देता हर हर महादेव एवं अल्लाह हो अकबर के गुजो उसे धरती कंपायमान हो रही थी किसी को कुछ भी सूझ न पड़ रहा था चारों ओर रक्त की धार बह रही थी रुंड मुंड कटकर धरती पर लौट रहे थे घायल पड़े कराह रहे थे रक्त से गलियां भर गई थी गंगाका जल लाल पड़ गया था सभी एक दूसरे के खून के प्यासे हो रहे थे रणचंडी का खप्पर मांनो अभी भरा न था तोपेआग बरसाते बरसाते लाल पड़ गई थी जवानों के हाथ तलवार चलाते चलाते थक गए थे घोड़े लाशों को रो दते रौदते शिथिल हो गए थे चहू ओरर आग बरस रही थी।खून बह रहा था घायल उठ उठ कर फिर लड़ने का असफल प्रयत्न कर रहे थे अपना पराया कुछ भी न सूझाता था भारशिव क्षत्रिय संख्या बल में बहुत कम थे फिर भी किसी को मक्का मदीना याद आ रहा था तो किसी को प्रयाग और काशी हर हर महादेव का जयघोष से एक बार फिर गूंज उठा। भारशिव क्षत्रियों की सेना मैं एक तूफान उठा वह यवनोंके बीच में समा गई किले की गिरती दीवारे देख देखकर उनका जोश हजार गुना बढ़ रहा था रक्त के प्यासे हो रहे थे आज उनके भारशिव क्षत्रिय राजवंश साम्राज्य के प्रतिष्ठा का प्रश्न था और उनके राजा के मर्यादा का प्रश्न था वे भूखें की तरह झपट रहे थे भाले के एक एक झटके में तीनतीन लाशें गिरा रहे थे महाराज और छोटे राजा दौड़ दौड़ कर सबको उत्साहित कर रहे थे मां के दूध की शपथ दिला रहे थे गंगा एवं शिव का स्मरण करा रहे थे और स्वयं खून से लथपथ दोनों हाथों से तलवार चला रहे थे शबास गजराज छोटे राजा ने ललकारा गजराज और शाह शर्की के सेनापति की भिड़ंत थी गजराज ने जाहिद अली को भाले से मार डाला।इधर शातिर ने राजा बलदेव जी के पीठ में भाला मार दिया और खून की मोंटी धार फूट निकली जब महाराज डलदेव जी की नज़र अपने छोटे भाई पर पड़ी तो तों शेर की तरह टूट पड़े लेकिन वह अपनी जान बचाकर भाग निकला छोटे राजा डगमगा कर गिर पड़े महाराज ने अपने आंखों से छोटे राजा को गिरते हुए देखा उनका क्रोध चौगुना बढ़ गया वह बाबर सैयद की ओर झपटे सैयद भी पीठ दिखा कर भाग निकला महाराज ने उसी क्रोध में भाला चलाना प्रारंभ किया जो सामने पड़ा उसी को मौत के घाट उतार दिया घोड़ा हिरण की तरह चौकड़ी भर रहा था महाराज घमासान युद्ध कर रहे थे शाह शर्की की की सेना दाल उठी महाराज जिधर झपटते उधार ही मैदान साफ हो जाता । महराज का अपूर्व साहस देखकर यवन सेना के पैर उखड़ गए। भारशिव क्षत्रियों ने सेना का पीछा किया उसी समय शाह शर्की का लड़का मुहम्मद शाह अपनी सेना सहित आ पहुंचा इससे यवन सेना का मनोबल बढ़ गया वह ्लौट पड़ी एक विचित्र दृश्य उपस्थित हो गया। यवनों की दूसरी सेना देखकर भारशिव क्षत्रियों का उत्साह फीका पड़ गया फिर भी प्राण उत्सर्ग कर लड़े जा रहे थे दोनों सेनाएं पुन:एक दूसरे पर टूट पड़ी महाराज को शाह की ओर जब पढ़ते देख गजराज सैयद की ओर बढ़ गयेबाला तान कर सैयद के प्राण लेना ही चाहता था कि एक सनसनाता हुआ गोला गजराज के पेट को चीरता हुआ निकल गया गजराज की मृत्यु हो गई अब महाराज अकेले थे घोड़े से सैनिक की शक्ति शाह पर झपटे शाह के माथे पर पसीना आ गया वह प्राण बचाकर फिर भागाऔर साथ ही उसकी सेना भी भागने लगी यवन से ना भागती हुई पखरौली तक चली आई दो मिल तक दूर तक भागने के बाद एवसेना पुन; रुकी और यहां पाखरौली के मैदान में खुलकर युद्ध होने लगा शाह, शातिर एवं सैयद तीनों मिलकर महराज बलदेव जी को घेर लिए उपर अस्त्रों की बौछार हो रही धी महराज पूरी शक्ति से लड़ रहे थे पीछे की ओर मुड़ पर वार करते तो सामने सैयद प्रहार करता सैयद पर झपटते तो शाह का भाला उनकी पीठ में धंस जाता महाराज से अब सहा न गया उन्होंने दोनों हाथों से तलवार चलाना प्रारंभ किया वह प्राणी पर खेलने लगे महराज के इस रण कौशल पर सभी कांप उठे तीनों घायल हो चुके थे सबके होश उड़ गए। प्राण बचाना दूभर हो रहा था उसी समय तीनों ने एक साथ महाराज पर आक्रमण किया शाह के दोनों लड़के भी आ धमके महाराज पुनः दूने आवेश से उनकी ओर झपटे तभी शातिर की तलवार उनके पेट में धंस गई वह लड़खड़ा उठे तव सैयद ने एक झटका दिया वह संभल न पाए की शाह ने उनकी पीठ में भाला मारा तीन दिनों तक लगातार चले युद्ध के बाद मैदान शाह के हाथ लग सभी प्रसन्न हो उछल पड़े या अली अल्लाह हो अकबर की जयघोष वायु मंडल में गुज उठा।शातिर ने तलवा महराज का सिर काट दिया औरसिरको भाले की नोक पर टांगकर किले की ओर चला ,,,,,आगे का इतिहास दूसरे पोस्ट पर क्रमश लिखें


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