*"पृथ्वी" *भर : * *अधिष्ठाता * "आप : "राजा" धृष्ट्रि सेन* के* पुत्र *भर सेन *तथा *भर* सेन *के 2 पुत्र *रजि* तथा "रज* हुए ये "नग" की तरह स्थिर चित् अटल , तथा अबिचल थे ,
नग अर्थ पर्वत होता है ! इसलिए यह *नागवंशी*क्षत्रिय*कहलाये* और कालांतर में *भर */*राजभर*
के नाम से सुविख्यात हुए संदर्भ ऐतरेय उपनिषद एवं भारशिव नाग वंश का इतिहास लेखक गिरधर शर्मा चतुर्वेदी और
आज अज्ञानता बस भर/राजभर"जाति" के नाम से जाने जाते हैं, यह ऐतिहासिक घटना बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण एवं हृदय विदारक है क्योंकि यह सर्वश्रेष्ठ भारशिव क्षत्रिय जाति हैं-"राणा
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