भर राजा शिवदेव ( 14वी सदी)
अवध प्रांत के नए अंबेडकर नगर जिले में भर क्षत्रियों की संख्या भी बहुत अधिक है इस जिले में एक कस्बा और बाजार सिकंदरपुर है जनश्रुति के अनुसार सिकंदरपुर का नाम पहले शिवपुर था जिस समय यहां पर भर क्षत्रियों का शासन था
सिकंदरपुर कस्बे के बगल एक स्थान का नाम भवन तरवा पर है हमारे एक मित्र बताते हैं कि इस स्थान का शुद्ध नाम यहां की जो रानी थी तारा का भवन जो अप भ्रंश होकर भवन तरवा हो गया है सिकंदरपुर कस्बे और बाजार से लगभग 3 किलोमीटर दूर पूरब उत्तर दिशा में टोंस नदी के किनारे एक स्थान है जहां पर भर क्षत्रियों की कोट थी कोट के वजह से उस स्थान का नाम गढ़ा है
आमतौर पर बोलचाल की भाषा में किला कोट को गढ़ भी कहा जाता है
Dayasankar Bharsiv: भर क्षत्रियों के किले की वजह से ही इस स्थान का नाम गढ़ा पड़ा जो आज भी एक टीले के रूप में बहुत दूर तक फैला हुआ है यहां की रानी गढ़ा किले से सुरंग के रास्ते स्नान के लिए जाती थी किले से
सुरंग का रास्ता सगरा नामक स्थान पर खत्म होता था उसके बाद सगरा से ऊपरी पैदल पथ के रास्ते दूध ओड़िआ तालाब पर पहुंचती थी जहां तालाब में रानी एवं अन्य राजघराने की स्त्रियां स्नान करती थी कहते हैं कि यह दूध का तालाब था जिसके कारण इसका नाम दूधोरिया पड़ा जो इसके नाम से ही प्रतीत हो रहा है रानी के इस तालाब में स्नान करने के बाद तालाब से थोड़ी सी दूर पूरब दिशा में एक शिवाला था जिसमें पूजा-अर्चना करती थी और फिर इन्हीं रास्तों औ
र सुरंग से होते हुए किले को प्रस्थान करती थी .
सर्वप्रथम यहां पर लगभग 1370 ईसवी के आस-पास एक सूफी फकीर सैयद शाह सिकंदर का आगमन हुआ जो ऑल वस्ती सऊदी अरब से चल कर यहां आए उस सूफी फकीर ने अपना बैठ
उस सूफी फकीर ने अपना बैठ का उसी तालाब के बगल बनाया जहां पर रानी और राजघराने की स्त्रियों का स्नानागार था जब इस बात की जानकारी भर क्षत्रिय राजा शिवदेव को हुई तो उन्होंने अपने दूतों के द्वारा संदेश भिजवाया कि उनसे कहो कि वह अपना बैठका कहीं और बना ले क्योंकि वहां पर स्त्रियों के नहाने का तालाब है इसलिए उनका वहां पर बैठना उचित नहीं है इस पर उस सूफी फकीर ने कहा कि हम जहां पर बैठे हैं वही रहेंगे और वहां से कहीं नहीं जाएंगे इस पर भर क्षत्रिय राजा शिवदेव ने उस फकीर की इस धृष्टता के लिए उसको मरवा कर फेंक वादिया कालांतर में लगभग इस घटना के 20 बरस बाद सन 1390 ईस्वी में सैयद शाह सिकंदर के कुल से ही एक और सूफी फकीर सैयद शाह जमालुद्दीन का यहां पर आगमन हुआ .
सैयद शाह जमालुद्दीन ने सर्वप्रथम सिकंदरपुर बाजार और कस्बे से डेढ़ किलोमीटर पश्चिम दिशा में मखदुमपुर गांव में एक विधवा ब्राह्मणी के घर पर आगमन हुआ उस विधवा ब्राह्मणी के कोई संतान नहीं थी वह अकेली रहती थी सूफी फकीर ने उस विधवा ब्राह्मणी को मुहरे,अशर्फी, धन दौलत अथवा जमीन आदि का प्रलोभन देकर उससे भर क्षत्रिय राजा शिवदेव के किले के गुप्त रहस्य की जानकारियां हासिल की. उस विधवा ब्राह्मणी ने उस फकीर को बताया कि यहां कि भर रानी बहुत बड़ी जादूगरनी हैं और वो सदानंद नामक भैंसे के पीठ पर जादू का सजा हुआ कलश लेकर चलती हैं जब तक किसी भी प्रकार से वह जादू का कलश नहीं छूटेगा तब तलक आपको यहां पर विजय श्री मिलना नामुमकिन है इसके अलावा उस ब्राह्मणी ने किले की और भी जानकारियां उस फकीर को प्रदान की उस विधवा ब्राह्मणी से किले के गुप्त रहस्य की जानकारी मिलने के बाद उस फकीर ने उसी दूधोरिया तालाब के किनारे उसी स्थान पर अपना बैठका बनाया जहां पहले वाली फकीर ने बनाया था भर राजा शिवदेव के द्वारा उसके लिए भी वही फरमान जारी हुआ जो पिछले सूफी फकीर के लिए जारी हुआ था
इस सूफी फकीर का भी जवाब स्पष्ट था कि हम जहां पर बैठे हैं वही रहेंगे और वहां से कहीं नहीं जाएंगे क्योंकि उस सूफी फकीर को किले के गुप्त रहस्य की जानकारी हासिल ही हो चुकी थी बताते हैं कि सगरा ताल और दूध ओड़िया तालाब के बीच जमीनी पैदल पथ रास्ते पर गुलेल के द्वारा जादू के कलश को फोड़ा गया इसके बाद मुस्लिम आक्रमणकारियों और भर क्षत्रिय सेना के बीच भयंकर युद्ध हुआ .
Bharsiv: इस युद्ध में भर क्षत्रिय वीरों ने धर्म, संस्कृति, राज्य रक्षा में खुद को न्योछावर कर दिया इसके बावजूद युद्ध के अंत मे भर वीरों को युद्ध में पराजय का मुंह देखना पड़ा मुस्लिमों द्वारा यहां पर विजय प्राप्त करने के बाद शिवपुर का नाम बदलकर सैयद शाह सिकंदर के नाम पर इस जगह का नाम सिकंदरपुर रख दिया और उस विधवा ब्राह्मणी को इनाम स्वरूप कुछ गांव जमीन दिया गया.
दूधोरिया तालाब के ऊपर यानी बगल में तीन मजार बनाए गए जो क्रमश उन दोनों सूफी फकीरों और एक उस विधवा ब्राह्मणी का था करीब 30 35 साल पहले कुछ अज्ञात लोगों के द्वारा धन के लालच में उन तीनों कमरों को खोल डाला गया था लेकिन पुनः उन गड्ढों को पाटकर उसके ऊपर पीर मजार बना दिए गए आज के समय में वहां पर 22 मजार हैं.
और वहां पर प्रत्येक वर्ष मुस्लिमों द्वारा सैयद शाह सिकंदर उर्फ दादा मियां के नाम पर उर्स का आयोजन किया जाता है जो दो-तीन दिनों तक चलता है गढ़ा किले की जमीन पर अतिक्रमण लोगों द्वारा बहुत तेजी से हो रहा है वहां के क्षेत्रीय लोगों से यह जानकारी मिली की जब यहां पर खुदाई की जाती है
तो मूर्तियां और तलवारे मिलती हैं बताते हैं कि यह राजभरों की बस्ती और उनके किले का अवशेष टीले के रूप में काफी दूर में फैला हुआ है.1 गढ़ा- किले का अवशेष टीले के रूप में.2 सगरा ताल- किले से सुरंग सगरा ताल तक जो अब नाले के रूप में परिवर्तित हो गया है.3 सुरंग- किले से जैनापुर होते हुए सगरा तक.4 दूधोरिया तालाब- अभी भी 5,6 बीघे में फैला हुआ मौजूद है.5 शिवालय- खंडहर अवस्था में अभी भी मौजूद है.....








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