खुन से सना है भारशिव नागवंशी क्षत्रिय राजभरों के वीरगाथा का इतिहास


सकलडीहा से श्रवण कुमार

चंदौली , पूर्वांचल की धरती अपने आगोश में कई एतिहासिक घटनाओं को अपने अन्दर समेटी हुयी है। उस महान एतिहासिक घटनाचक्रों को भारत पर शासन कर रहे मुस्लिम संतलत ने प्रकाश में लाने के बजाय अंधकार के गर्त में ही दबाने का काम किया। शायद उन्हें अंदेशा था कि यह क्रांति की चिंगारी यदि भड़क गयी तो ज्वाला बन कर पूरे इस्लाम को ही जला कर नष्ट कर देगी। लोगों के जेहन से काफी दूर अंधेरों में गुमनाम इस इतिहास को #भारशिव नागवंशी क्षत्रिय महासभा के वरिष्ठ संरक्षक व एक जाने-माने इतिहासकार ठाकूर प्रवीण कुमार सिंह की कलम भारत देश के उन महान वीर भर सपूतों के कुर्बानी की जय घोष करते हुए लिखती है कि जिसे आज की पीढ़ी शायद उनके बलिदानों और वीरता की गाथा को नहीं जान पायी है। 

उस महानकुल की इतिहास को जिसे षडयंत्र कर गुमनाम रखा गया है उसे प्रकाशित करने का प्रयास कर रहा हूं। जो भारत में रक्तरंजित होली की कलंकित इतिहास से शुरू होती है। जिसकी नींव उसी दिन पड़ गयी जब विश्व में बढ़ रहे इस्लाम धर्म की उड़ रही पताका कई राष्ट्रों को अपने अधीन करते हुए सीधे भारत की ओर रूख कर लिया था। जहां भारत के महान वीर भारशिव भर क्षत्रियों ने उनपर नकेल कस कर उनके मार्ग को रोक दिया था। 

आगे लिखते हैं कि जब भी इमानदारी पूर्वक इतिहास के आने वाले काल खण्ड में कभी भी भीषण युद्ध का जिक्र होगा तब-तब #भारशिव नागवंशी क्षत्रिय योद्धाओं को याद किया जाता रहेगा। 
जिन्होंने राष्ट्रभक्ति और हिन्दू धर्म की धर्मध्वजा को सही सलामत रखने के बदले अपने गर्दनों की मोल चुका कर किया है। इनकी अद्भूत वीरता को देख कई क्रुर मुस्लिम शासकों को भी अन्दर से भयभीत कर दिया था। 

धन्य हैं उस राजभर समाज की स्त्रियां जिन्होेेंने अपने सतित्व की रक्षा करते हुए मां गंगा के पवित्र जल में जलसमाधि लेकर क्षत्रिय कुल के गौरव को अमर गाथा बना दिया।

 इस महान गाथा पर प्रकाश डालते हुए विस्तार से लिखते हैं कि भारत देश एक विभिन्न धर्म, सम्प्रदायों, जाति-उपजातियों एंव अनेक संस्कृतियों के महामिश्रण का अनोखा देश है। यहां के निवासीयों में चली आ रही परम्पराएं, रिति-रिवाज और रहन-सहन से परिचित होना आसान नहीं है। इसके लिए प्राचीन इतिहास के काल खण्ड और धरती पर विद्यमान अवशेष किलों के खंडहर, कोट के अलावा प्रचलित क्षेत्रीय परम्पराओं का अध्ययन करना बहुत आवश्यक है। 
ऐसी ही इस महान देश की अति प्राचीन क्षत्रिय जाति भर भारशिव नागवंशीयों का इतिहास है जिन्हें आज के समय में भर-राजभर आदि नामों से जाना जाता है। पूर्व काल में इस जाति में बहुत बहादुर क्षत्रिय राजा रहे हैं 

जो हिन्दू धर्म के प्रबल अनुवायी माने गये हैं। जिसका जिक्र बहुत से विद्वान ब्राह्मणों ने भी किया है। 

बताते हैं कि इस कुल से जुड़े लोग होली त्योहार पर खुशियां नहीं बल्कि मातम मनाते रहे हैं। लेकिन बदलते समय के अनुसार लोग भूलते चले गये, जिसके परिणाम स्वरूप अब यह परम्परा समाप्ति की ओर पहुंच गयी है। लेकिन जिस समाज ने अपने पूर्वजों के बलिदान को याद नहीं रखा उसके कुल और वंश का पतन होने लगता है। उपलब्ध एतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर हम चलते हैं

 बीते 14 वीं शताब्दी के अंतिम काल में जहां वर्तमान जिला रायबरेली में भर राजा डलदेव का एक बड़ा राज्य स्थापित था, जो दक्षिण दिशा के मध्यप्रदेश के रीवां और इलाहाबाद के आस-पास तक फैला हुआ था। इस राज्य की राजधानी डलमऊ थी। वहीं पास के ही भदोही और काशी (वाराणसी) में भी राजा #भर क्षत्रियों का ही अधिपत्य था। 


परंपरा यह है कि रायबरेली शहर को भरो द्वारा स्थापित किया गया था 
जो भरौली या बरौली के नाम से जानी जाती थी जो कालांतर में परिवर्तित होकर बरेली हो गयी जो समय के एक अवधि के लिए शहर के भर स्वामी थे

आज भी डलमऊ का किला अपने विध्वंस की कहानी का साक्ष्य लिए मोक्षदायनी मां गंगा के किनारे खड़ा भर (भारशिव नागवंशी) क्षत्रियों की महान वीरगाथा को बयां कर रहा है। अपने चार भाईयों के साथ राजा डलदेव, बलदेव, काकोरन और वैदान के साथ रहते हुए अलग-अलग जगहों पर इन भाईयों का किला बनवा रखा था। राजा डलदेव को छोड़ कर शेष भाई साधारण राजा की भांति शासन करते थे। 

वर्ष 1351 से 1388 में मिले एक एतिहासिक उल्लेख में ख्वाजा जहां मलिक सखर जो नसीरूद्दीन मुहम्मद तुगलक का बड़ा सहायक था, जो बाद में तुगलक से अपना सम्बन्ध तोड़ कर सन् 1393 से 1394 के बीच जिला जौनपुर के कुछ हिस्सों पर अधिकार कर एक नये राज्य की स्थापना किया। इसे बाद महत्वाकांक्षी जहां मलिक सखर ने राज्य का विस्तार करते हुए अवध दोआब में चाईल और पूर्व में तिरहुत तक अधिकार कर लिया। 

इतिहास बताता है कि सन् 1399 में उसकी मौत हो जाती है। इसके बाद उसका दत्तकपुत्र सैयद मुबारक शाह गद्दी पर बैठा, लेकिन बहुत दिनों तक वह राज्य का सुख नहीं भोग पाया। उसके निधन के बाद 1402 ई0 में इब्राहिम शाह सर्की जौनपुर का राजा बना और जौनपुर को सिराजे हिन्द का नाम दिया। लेकिन चारों ओर #भारशिव नागवंशीयों का साम्राज्य होने से वह हमेशा भयभीत रहता था। उसे पता था कि यदि हिन्दू धर्म के खिलाफ एक कदम भी चला तो यहां उसे जमीन में दफन होना पड़ेगा। इसलिए वह शांत और सभी से तालमेल बना कर रहने में ही अपनी भलाई समझा। उसके किले का एक सिपहसलार बाबा हाजी नामक मुस्लिम था जिसकी लड़की का नाम सलमा था। जो बहुत सुन्दर रही। संयोगवश एक बार राजा #डलदेव राजभर शिकार के लिए जा रहे थे। तो सलमा को देख कर वह काफी मोहित हो गये और उन्होंने अपनी शादी का प्रस्ताव उसके पिता के समक्ष रखा। लेकिन वह इंकार कर दिये। इससे नाराज राजा डलदेव ने सलमा का डोला उठा ले जाने की धमकी दे डाला था। वहीं कुछ अन्य इतिहासकार बताते हैं कि सलमा खुद डलदेव से गहरा प्रेम करने लगी थी। जिसे उसके पिता ने भांप लिया और राजा इब्राहिम शाह सर्की से मंत्रणा कर एक गहरा षडयंत्र बनाया। इसका मुख्य कारण यदि किसी हिन्दू राजा के साथ मुस्लिम लड़की की शादी हो जायेगी तो इस्लाम के खिलाफ होगा। इधर राजा डलदेव भर अपने मंत्रीयों के समझाने पर सलमा को चीत से भुला दिया। लेकिन इब्राहिम शाह सर्की मन ही मन इसके आड़ में ही अन्य दूर-दूर के मुस्लिम शासकों से धर्म के नाम पर एकजुटता करने में लगा रहा। क्योंकि उसे पता था कि फिरोज शाह तुगलक जैसे राजा की हिम्मत नहीं हुयी थी इन भर राजाओं से लोहा लेेने के लिए इसलिए सीधे युद्ध करने के बजाय गहरा षडयंत्र का ही सहारा लेता उचित समझा। धीरे-धीरे हिन्दु राजपूत, जमींदारों को आश्रय देना शुरू किया और उनमें आपसी फुट डालकर राजा #डलदेव राजभर के खिलाफ भड़काने में सफल हो गया।


 उस समय कनपूरीया, मौनस, विशेन क्षत्रियों और जमींदारों से चीढ़ रही। जो जलते आग में घी का काम किया। उसने कुछ हिन्दु सामंतो के साथ अपने मुसलमान गुप्तचारों को लगा दिया। जिसमें मली हुसैन और अलाऊ लहक रहे। जो राजा डलदेव के किले में दाखिल होकर सभी आक्रमण के रास्ते और उनके कमजोर नसों को बहुत बारीकी से परख लिया। सटीक पता चला कि क्षत्रिय लोग होली के दिन खुब मांस व मदिरा का सेवन कर मस्त रहते हैं। जिसके चलते वह उस दिन तलवार नहीं उठा सकते हैं। इस अवसर का लाभ उठाकर डलमऊ दुर्ग पर होली के रात में भयानक हमला कर दिया। पूरी ताकत के साथ मुस्लिम सेना ने स्थानीय गद्दारों के सहयोग से भारी रक्तपात किया। वहीं भदोही के राजा अगियारवीर व सुरयावां किले पर अन्य टुकड़ीयों ने एकता बद्ध हमला बोल दिया था। इधर इस षडयंत्र से अनजान राजपरिवार, सैनिक व प्रजा वर्ग सभी नशे में मस्त हो कर आनन्द में डुबे हुए थे। कुछ ढ़ोल और नगाड़ों की थाप पर मस्ती कर रहे थे। ऐसे सुनहरा अवसर सर्की की सेना को मिला जो दुर्ग को चारों ओर से घेर निहत्थे भर सैनिकों पर टुट पड़े थे। इस भीषण युद्ध के बारे में कई इतिहासकारों ने लिखा है कि हालत यह हो गयी थी कि किले के आंगन से लेकर डलमऊ-वैशवारा तक धरती नरमुंडों से पट गयी थी। यही हाल काशी, अगियारवीर व भदोही का रहा। 



बताया जाता है कि भर राजाओं के महान सम्राट राजा #सुहेलदेव_राजभर ने लाखों मुस्लिमों को गाजर-मूली के तरह से काट डाला था। उसका बदला मुस्लिम शासकों ने #भरों से होली पर पूरे व्याज सहित लिया और #भरों के सम्राज्य का अंत कर दिया। ऐसी मारकाट इतिहास में कभी नहीं हुआ है। इसमें #भरों के बच्चों को भी नहीं बख्सा गया। युद्ध के बाद बचे भर सैनिक थोड़ी मात्रा में जंगलों मे शरण लेकर अपनी जान बचाया। वहीं इस युद्ध में भर शासकों की स्त्रियों ने अपनी ईज्जत मुस्लिम शासक से बचाने के लिए किले का फाटक खोल कर गंगा नदी के जलधारा में अपने जीवन को समाप्त कर लिया। एक मुस्लिम इतिहासकार सैयद इकबाल अहमद ने अपनी पुस्तक सर्की राज्य जौनपुर का इतिहास में लिखते हैं कि सर्की के राज्य को मजबूत करने में हिन्दू जमींदारों बड़ा योगदान था। उसने अपनी सेना में लालच देकर राजपूतों को शामिल कर लिया था। जिसका नेतृत्व बाढ़न सिंह, भूजा सिंह, राम सिंह, सामंत सिंह, आदि को सौंप रखा था। उस खुन भरी होली की याद में डलमऊ गांव के लोग होली नहीं मनाते हैं। तीन दिन सुतक लगता है। गांव में किसी के यहां भोजन नहीं बनता हैै। उस युद्ध से जुड़ा एक डाल-बाल का मेला डलमऊ और पखरौली के बीच भादों मास के आस-पास सोमवार को लगता है। कहते है कि वीर सैनिक डलदेव भर बलदेव भर लड़ते हुए इसी स्थान पर वीरगति को प्राप्त किये थे। जहां उनके याद में क्षेत्रीय ग्रामीणों द्वारा मेला लगा कर याद किया जाता है। वहीं गदर के फुल नामक पुस्तक में अमृत लाल नागर लिखते हैं कि मेजर सेकेन्ड्रूज ने रायबरेली के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए लिखा है कि रायबरेली के राजा डलदेव से #इब्राहिम शाह सर्की से भीषण युद्ध हुआ। 


वह स्थान सुदामनपुर के पास था। आगे लिखा है कि भरों के नस्ल को मुस्लिमों शासकों ने समाप्त करने की पूरी कोशिस किया है। जो महिलाएं गर्भवती रही उनके बच्चों को पेट में ही मार दिया गया। ऐसे ही मुल्ला दाउद अपनी पुस्तक चन्द्ररानी में वर्णन किया है कि उत्तर भारत के वीर शासक जाति मुस्लिम शासकों से हमेशा दुश्मनी रही है। इसलिए भदोही व काशी क्षेत्र के बहुत से घरों में होली नहीं मनाया जाता था। समय ने अब वह घाव कम कर दिया है।

 लेकिन होली पर्व पर खोया हुआ भारशिव
 नागवंशीयों का सम्राज्य हमेशा याद दिलाता रहेगा

Comments

  1. राजभरों का इतिहास हर जगह है बहुत ही वीर लड़ाकू राजभर ......

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  2. जय भारशिव क्षत्रिय भर राजभर

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