अंग्रेजों ने जितना भरो के बारे में लिखा है उसको समेट पाना बड़ा ही मुश्किल कार्य



मिस्टर सर ए. कनिंघम-ः ‘‘किसी समय देष में भरों का बोलबाला था। जिनके प्रभुत्व और सभ्यता की प्राचीन परम्परा आज तक चली आ रही है। ’’(हिन्दू ट्राइब्स एण्ड कास्ट वाल्यूम फस्र्ट पृष्ठ 362)।
बन्दोवस्ती आफीसर (अवध प्रान्त) मिस्टर उडवर्न -ः ‘‘भर जाति षूरवीर ,पराक्रमी ,रण कुषल और कला निपुण थी। उनकी सभ्यता स्वयं की उपार्जित सभ्यता है। ’’
मिस्टर डी. एल. ड्रेक ब्राकमेन-ः ‘‘ आर्यों में से भर भी एक जाति है। ऐतिहासिक प्रमाणों द्वारा सिद्ध है कि इस स्थान (आजमगढ़) के प्राचीन निवासी भर तथा राजभर हैं। ’’ (आजमगढ़ गजेटियर पृष्ठ 84 व 155)।
मिस्टर सी. एस. एलियट-ः ‘‘ भरों ने ईसा के थोड़े ही काल पष्चात आर्य सभ्यता का विकास किया। भरों ने कनकसेन की अध्यक्षता में अपने विपक्षी कुषनों को गुजरात तथा उत्तरोत्तर नामक पहाड़ियों की ओर मार भगाया। ’’ डा. फानसिस बच्चन-ः ‘‘परिहार राजपूत षाहाबाद निवासी भरों के वंषज हैं। वर्तमान में बहुत से राजपूत अपनी अँतड़ियों में भरों का खून रखते हैं। ’’(आन दी ओरिजिनल इनहेविटेन्स आफ भारतवर्ष आर इण्डिया गुस्तव आपर्ट पृष्ठ 45)।
डा. ओलघम-ः ‘‘बुद्धकाल के अवनति के समय भर और सोयरी इस देष पर षासन करते थे।’
अंगे्रजों ने भर ,राजभर जाति के विषय में जो कुछ भी लिखा है उस सबको एक छोटी सी पुस्तक में समेट पाना बहुत ही मुष्किल कार्य है। यदि हम चाहें कि भर जाति के विषय में उनके द्वारा लिखी गई रिपोर्ट ,जनगणना रिपोर्ट, गजेटियर्स आदि का अध्ययन ही कर लें तो इसके लिए कई वष्र्र लगेंगे।
उपसंहार-ः अंग्रेजों द्वारा भर जाति के विषय में लिखी गई सामग्री के सम्बंध में उनकी जितनी प्रषंसा की जाये उतनी ही कम है। 


राजभर जाति वह जाति है जिसने सतयुग, त्रेता, द्वापर आदि युगों में भी अपना डंका बजाया है। गोरखपुर गजेटियर के पृष्ठ 173,एवं 175 में लिखा है कि जब अयोध्या का नाष हो गया तब वहाँ के राजाओं ने रुद्रपुर में अपनी राजधानी स्थापित की और श्री रामचन्द्र के बाद जो लो गद्दी पर बैठे ,वे लोग भर तथा उनके समकालीन जातियों द्वारा परास्त हुए।
जौनपुर गजेटियर के पृष्ठ 148 में लिखा है कि जब भरों के ऊपर कठोरता का व्यवहार होने लगा तब कुछ पराधीन भर जाति के लोग अपनी जाति का नाम बदल दिया। समयानुसार धीरे धीरे क्षत्रियों में मिल गये। इस कथन से स्पष्ट है कि बहुत से तरक्कीषुदा राजवंष राजभरें से सम्बंधित हैं। बलिया गजेटियर के पृष्ठ 77 एवं 138 में कहा गया है कि आर्यों में से भर भी एक प्राचीन जाति है।
इस जाति के नाम पर ही इस देष का नाम भारत पड़ा है। आज भारत के किसी भी क्षेत्र में जाइये इस जाति के नाम पर स्थानों के नाम अवष्य मिल जायेंगे। बिहार प्रान्त का नाम भी इसी जाति के नाम पर पड़ा है। दी ओरिजिनल दनळेविटेन्स आफ भारतवर्ष आर इण्डिया के पृष्ठ 40 पर लिखा है कि काषी के निकट बरना नामक नदी तथा बिहार नामक राष्ट्र भर षब्द से निकला है। क्योंकि एक समय में भर लोग इस प्रान्त पर षासन करने वाले थे और इन्हीं की प्रधानता भी थी। बिहार में गया के पास बारबर पहाड़ी पर षिवलिंग स्थापित है, उसे एक भर राजा ने स्थापित किया है।
               घर का सिक्का खोटा तो परखैया को क्या दोष ?

          राजभर समाज के लोग चाहते हैं कि दूसरे समाज से उन्हें समुचित आत्म-सम्मान  मिले। दूसरी समाज के लोगों को जब आच के जातीय इतिहास की जानकारी नहीं होगी तो भला वे क्यों आपको सम्मान देंगे ? उन्हें सपना नहीं आता कि आपके पूर्वजों ने किसी जमाने में भारत पर षासन किया था। उन्हें सपना नहीं आता कि आप भरत वंष के हैं या नाग वंष के हैं, या आपके नाम पर भारतदेष का नाम भारत पड़ा है ,या आप प्राचीन क्षत्रिय हैं या उच्च राजपूत हैं या आपकी जाति से ही कई प्रसिद्ध राजपूत वंषों का उदय हुआ है।
          दूसरी समाज के लोगों के पास इतना समय नहीं है अथवा उन्हें मतलब नहीं है  िकवे आपसे सम्बंधित इतिहास की खोजबीन के लिए प्राचीन-अर्वाचीन ग्रन्थों की खाक छानते रहें। फिर आप क्यों दूसरों से अपेक्षा करते हैं  िकवे आपका आदर करें। जब आप में स्वयं आत्म-सम्मान की भावना नहीं है तो दूसरों को आपकी क्या पड़ी है।
          यथार्थ बात तो यह है कि आप लज्जाहीन हो गये हैं। आपकी अंतड़ियों में खून नहीं पानी बह रहा है। 

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