वीरभद्र को शिव ने प्रकट किया था। वे शिव स्वरूप ही थे। वे भारशिव थे अर्थात शिव का स्वरूप अथवा भार ग्रहण करने वाले। भारशिव भरो की शक्ति अपार थी। चूंकि वे गणतंत्रीय व्यवस्था एवं समतामूलक समाज के पोषक एवं पक्षधर थे अतएव वैष्णव व्यवस्था के अनुयायियों ने उनके कत्ले आम की गुप्त योजना रची। भारत में मुसलमान शासकों ने तो खुले आम भरों के कत्ले आम के फतवे जारी किए थे किन्तु वैष्णववादी सामन्तों में इतना साहस नहीं था कि वे खुले आम भारशिवों को नेस्तनाबूंद करने की घोषणा कर सकें। इसके लिए इन्होंने ऐसे शब्द-अर्थ अलंकारों का उपयोग किया जिससे उनकी विचारधारा वाले लोग यह समझ सकें कि भारशिवों अथवा भर-भार जाति का विनाश करना है।
समतामूलक समाज की स्थापना के लिए भारशिवों को बहुत अधिक कीमत चुकानी पड़ी है। यदि धरती के गर्भ में इनके ष्षासन काल के ताम्रपत्र अथवा यत्र तत्र कुछ शिलालेख न मिलते तो यह कोई न जान पाता कि इस धरा में भारशिव नामक कोई महान वैभवशाली एवं वीर जाति भी थी। प्राचीन ग्रन्थों/पुराणों के लेखकों ने इस जाति का उल्लेख करने से परहेज किया। उल्लेख किया भी तो शब्दालंकारों, अर्थालंकारों का सहारा लेकर। ऐसी स्थिति में जब पुराणकारों ने कुछ स्पष्ट न लिखा हो, गोपनीयता बरती हो, उस गोपनीयता की चीरफाड़-आपरेशन आवश्यक है।


Jai bhawani jai rajputana
ReplyDeleteJai bharshiva
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