भारशिव वंश (140-384ईस्वी)


भारशिव दूसरी शताब्दी
 ईसा पूर्व से ही भर जाति का उल्लेख मिलना प्रारम्भ हो जाता है। 

भर जाती प्राचीन नाग-वंशियो से आपस मे आबद्ध पायी जाती है। गौतम बुद्ध के समय मिर्जापुर मे इसे भर्ग, भग्ग या भार्ग  उल्लिखित किया गया है (Hindu Polity- by K.P. भारशिव वंश (140-284ईस्वी)
छठवीं शताब्दी ईसा पूर्व से ही भर जाती का उल्लेख मिलना प्रारम्भ हो जाता है। उए जाती प्राचीन नाग-वंशियो से आपस मे आबद्ध पायी जाती है। 


गौतम बुद्ध के समय मिर्जापुर मे इसे भर्ग, भग्ग या भार्ग  उल्लिखित किया गया है (Hindu Polity- by K.P. JAYASWAL PAGE-49)20 SE 10ईसा पूर्व विदिशा के भूति नदी ने इसी भर से भारशिव वंश प्रारम्भ किया, इस तरह सन ईस्वी ही भरशिव वंश का उदभव काल माना जाता है। होशंगाबाद और जबलपुर के घने जंगलो से निकलकर बघेलखंड होते हुये पुनः ये अपने प्राचीन स्थानो पर पहुँच गए पर भर से भारशिव  बनकर। गंगा मे स्वयम को पवित्र कर भर लोग एकत्रित होना प्रारम्भ कर दिया। मिर्जापुर (कांतित, विष्णु पुराण मे इसे कांतिपुरी कहा गया है) मे आज भी उनका प्राचीन किला विद्धमान है। इस किले को मुसलमान शासको ने कुछ अंश तक तोड़ डाला है विंध्याचल की पहाड़ियो पर एक विशाल जमावड़ा हुआ। भर लोगो ने अपनी मातृभूमि को पुनः प्राप्त करने के लिए शपथ खाई। अपनी सैन्यशक्ति का पुनः वे निर्माण करने लगे। इसी शक्ति को नाम दिया गया “विंध्यशक्ति” इस शक्ति के प्रमुख का नाम अज्ञात है। इसीहासकारो ने इस शक्ति को एक शासक के रूप मे निरूपित किया है।
विंध्यशक्ति  कौन ? – इतिहासकारो ने विंध्यशक्ति का जो उल्लेख किया है उससे यह ज्ञात नहीं होता की विंध्यशक्ति कोई शासक भी है पर इस शक्ति के द्वरा जिस नृवंश की स्थापना हुई उसे वकाटक वंश कहा गया । PAGE-49)20 SE 10ईसा पूर्व विदिशा के भूति नदी ने इसी भर से भारशिव वंश प्रारम्भ किया, इस तरह सन ईस्वी ही भरशिव वंश का उदभव काल माना जाता है। 
होशंगाबाद और जबलपुर के घने जंगलो से निकलकर बघेलखंड होते हुये पुनः ये अपने प्राचीन स्थानो पर पहुँच गए पर भर से भारशिव  बनकर। गंगा मे स्वयम को पवित्र कर भर लोग एकत्रित होना प्रारम्भ कर दिया। मिर्जापुर (कांतित, विष्णु पुराण मे इसे कांतिपुरी कहा गया है) मे आज भी उनका प्राचीन किला विद्धमान है। 


इस किले को मुसलमान शासको ने कुछ अंश तक तोड़ डाला है विंध्याचल की पहाड़ियो पर एक विशाल जमावड़ा हुआ। भर लोगो ने अपनी मातृभूमि को पुनः प्राप्त करने के लिए शपथ खाई। अपनी सैन्यशक्ति का पुनः वे निर्माण करने लगे। इसी शक्ति को नाम दिया गया “विंध्यशक्ति” इस शक्ति के प्रमुख का नाम अज्ञात है। इसीहासकारो ने इस शक्ति को एक शासक के रूप मे निरूपित किया है।


विंध्यशक्ति  कौन ? – इतिहासकारो ने विंध्यशक्ति का जो उल्लेख किया है उससे यह ज्ञात नहीं होता की विंध्यशक्ति कोई शासक भी है पर इस शक्ति के द्वरा जिस नृवंश की स्थापना हुई उसे वकाटक वंश कहा गया ।

इतिहास मे यह त्रुटि की गयी की विंध्यशक्ति को र्जओ या भरशीवो के समूह की शक्ति न मानकर एक राजा मान लिया गया। दूसरा यह की ओरछा स्टेट मे स्तीथ स्थान बगट मे रहने वाले भारशीवो को वकट या वकाटक मानकर उन्हे ब्राह्मण बता दिया गया। 


वास्तव मे ऐसा इलिए हुआ की  विंध्यशक्ति से उभरा भारशिव प्रवरसेन(प्रवीर) बुंदेलखंड का (284-344 A D) शासक बना और उसने गौतमी ब्राह्मण की कन्या को अपनी महारानी बनाया। ब्राह्मणो ने उस पराक्रमी प्रवीर को अपनी कन्या देकर ब्राह्मणधर्म का प्रचार करना प्रारम्भ कर दिया। प्रवरसेन का पुत्र “गौतमीपुत्र” हुआ जिसेन राज नही किया पर उसक पुत्र रुद्रसेन प्रथम यहाँ पराक्रमी राजा हुआ। गौतमीपुत्र, भारशिव वंश के भवनाग (290-215 A D) की कन्या से विवाह किया। इस प्रकार यह मातृवंश परंपरा जान पड़ती है।


 प्रवरसेन प्रथम ब्राह्मण कन्या से विवाह किया यदि वह ब्राह्मण होता तो गौतमीपुत्र को मातृवंशी क्यो कहा जाता? विंध्यशक्ति के विवाह का कही उल्लेख नहीं है। वह भागीरथी के पवित्र जल से अभिषिक्त होकर शक्ति के रूप मे उभरा गण समूह था। प्रवरसेन इस गण-समूह का प्रवीर शासक बना। अतः वकाटको का इतिहास भरशिव वंश से अलग करके देखना सारे साक्ष्यों को झूठलाना है।

नागो का प्रभुत्तव चार स्थानो पर पुराणों ने कहे है। 1 विदिशा 2 कांतिपुरी 3 मथुरा और 4 पदमवाती
विदिशा की नागवंश साखा  को पुराणों मे दो भागो मे बाँटा  गया है

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