भारशिव नागवंशी क्षत्रिय सम्राट
भर महाराजा अमरेश , अमेठी ॥ 10वी शदी ॥ जनपद अमेठी
अमेठी एक जिला है । जो पहले सुल्तानपुर का एक तहसील था । अमेठी राज्य पर सन 966के पहले भर राजवंश राजाओं का शासन था । स्थानीय किंवदंतियों में सन 966के समय अमेठी में भर शासक अमरेश का शासन था । । उस समय अमेठी राज्य 299वर्गमील में फैला था ।
अमेठी राज्य पर राजभरों का अत्यंत समृद्ध और गौरव शाली रहा है । यहां पर भरो का इतिहास सर्वाधिक वर्षों का इतिहास रहा है । भर बहुत ही लड़ाकू जाति रही है । अतः इनके राज्य पर आक्रमण करना मौत को दावत देने के समान था । अतः एक षडयंत्र के तहत सन 966ई में नरवर गढ़ ग्वालियर से बंधल गोत्रीय सोढ़ देव उर्फ सूदा राय आए और भर राजा अमरेश के यहॉ नौकरी की ., राजा ने उन्हें बाद में मंत्री बना दिया । तमाम गुप्त जानकारी प्राप्त कर लेने के बाद भर राजा के खिलाफ षडयन्त्र करके उन्हें परास्त करके उनके राज्य पर कब्जा कर लिया । इस घटना का उल्लेख इतिहास विदों ने इस प्रकार किया है । महाराजा सोढ़देव जी ॥ 966-1007ई ॥ वंशानुक्रम के अनुसार सोढ़देव के पिता इष्टदेव जी ग्वालियर के राजा हुए । उन्होने अपने पुत्र के जन्म के पूर्व ही अपना राज्य दान देने की घोषणा करदी थी । अतः अपने पिता इष्टदेव के मरणोपरांत संपूर्ण राज्य दान करके सपरिवार अपनी राजधनी नरवर गढ़ ॥ ग्वालियर ॥ छोड़कर अमेठी के तरफ चले आए । इसके पूर्व भी कई बार अयोध्या के तीर्थ पर जाते हुए मार्ग स्थित होने के कारण अमेठी में (भर राजा अमरेश के यहॉ )रुक चुके थे । यह स्थान अपनी प्रकिरितिक दृश्यावली के कारण उन्हें बहुत अच्छा लगा था । (संदर्भ ग्रंथ -अवध के तालूकेदार पेज 462 लेखक पवन बक्शी ) राजा सोढ़देव जब अपनी राजधानी नरवर गढ़ ग्वालियर छोडकर सपरिवार अमेठी आये तो भर राजा ने उन्हें उचित सम्मान देतें हुए सरदार बना दिया और फिर उनके वीरता और सत्यनिष्ठा को देखकर अपना मंत्री बना लिया । (संदर्भ :सुल्तानपुर इतिहास की झलक पेज 166लेखक राजेश्वर सिंह )) परन्तु सोढ़देव उर्फ शुदा राय की सत्यनिष्ठा मात्र दिखावा थी । भर राजा के गुप्तचरों ने अवगत कराया कि सोढ़देव आप के खिलाफ षडयंत्र कर रहे हैं । किसी भी समय राज्य पर आक्रमण करके कब्जा कर सकते हैं । सोढ़देव उर्फ शुदा राय के इस कीरीत्य से क्षुब्ध होकर भर राजा अमरेश ने सोढ़देव उर्फ शुदा राय को मंत्री पद से हटा दिया । और अपने राज्य से निकाल दिया । सोढ़देव सपरिवार नरवर चले गये । अन्य क्षत्रिय राजाओं से सहयोगलेकर तैयारी करके एक विशाल सेना के साथ अमेठी राज्य पर आक्रमण कर दिया । भीषण संग्राम हुआ और अन्ततः भर राजा की हार हुई । इस प्रकार अमेठी राज्य पर सोढ़देव का कब्जा हो गया । उपरोक्त घटना को ग्रंथ :अवध के तालुकेदार पेज 462ले .पवन बक्शी व सुल्तानपुर की झलक पेज 166एवं अवध गजेटियर 1877वैलूम 1पेज 44में कुल मिलाकर इस प्रकार लिखा है । बन्धल गोत्रीय कछवाहा वंशीय सुदाराय लगभग 1000वर्ष पूर्व अयोध्या तीर्थाटन के लिया अपने घर नरवर गढ़ (ग्वालियर )से चल पड़े । उन्हें रायपुर के निकट निर्जन स्थान पर देवी का एक भग्न मँदिर मिला । जो जंगल झाड़ियों से घिरा था उस समय एक भर राजा यहां शासक था । वे उक्त देव स्थान पर रुके एवं वहां पूजा अर्चन की और वहीं सो गये --------देवी ने उन्हें स्वप्न में विशिष्ट जानकारी देते हुए बताया कि आप यहां के सर्वेसर्वा होंगे । सूदा राय ने उस स्वप्न से प्रभावित होकर अपनी यात्रा छोड़ दी । भविष्यवाणी के अनुसार वे भर राजा के सरदार बन गये और फिर मंत्री बन गये । उनके शौर्य से प्रभावित होकर भर राजा ने अपनी कन्या का विवाह .सुदाराय के पुत्र दूल्हा राय (कहीं कहीं सुदाराय लिखा है )से करने का प्रस्ताव रक्खा । परंतु सुदाराय ने प्रस्ताव ठुकरा दिया । अतः भर शासक ने उन्हें मन्त्री पद से हटा दिया । वे नरवर गढ़ चले गये । उनके मन में देवी के भविष्यवाणी के अनुसार उन्हें अमेठी का सर्वे सर्वा होना था यह बात हमेशा कौधती थी । अतः एक विशाल सेना एकत्र कर अमेठी की तरफ चल पड़े । भर भीषण संग्राम के पश्चात पराजित हो गये । इस प्रकार अमेठी राज्य पर सुदाराय उर्फ सोढ़देव का आधिपत्य हो गया । सुदाराय ने जहाँ पर स्वप्न देखा था वहीं पर अपना किला बनवाया । नोट :-उपरोक्त घटना कपोलकल्पित लगती है 1:-एक तरफ देवी ने सोढ़देव को स्वप्न दिखाना और स्वप्न में उन्हें बताना और दूसरी तरफ भविष्यवाणी का होना दोनों में विरोधाभास है । भविष्यवाणी में आदमी जगा होता है और भविष्यवाणी जब हॊती है उनके साथ साथ अन्य लोग जो वहां उपस्थित होते है सब सुनते हैं जबकि इस घटना में भविष्यवाणी केवल सुदाराय ही सुनते हैं और अकेले ही चिंतन करते हैं । यह घटना स्वप्न और भविष्यवाणी के सहारे महिमामंडन की कोशिश सी लगती हैं । 2:-सोढ़देव के पास भर राजा के कन्या के शादी का प्रस्ताव संदेह जनक हैं क्योंकि यह घटना भी देवी के स्वप्न और भविष्यवाणी के सहारे गढ़ी गयी हैं । 3:-उपरोक्त घटना में सत्यता पर कम महिमामंडन पर जादा ध्यान दिया गया है
इतिहासकार
रामचंद्र राव राजभर

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